हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 266

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


'भक्‍त नामावली' में लगभग 119 रसिक भक्‍तों का परिचय मिलता है। अंत में कुछ निर्गुण-शाखा के भक्तों के नाम दियें हैं किन्तु वे संख्या में बहुत कम हैं।

विद्वानों ने नाभा जी की भक्तमाल का रचना-काल संवत 1650 के लगभग माना है, अत: भक्‍त नामावली की रचना इसके बाद के दस वर्षो में सं. 1660 के आस-पास हो गई होगी। 'भक्‍त नामावली' में जिन रसिक भक्‍तों का उल्‍लेख है उनमें से अनेक का सं. 1660 के पूर्व निधन हो चुका था और कुछ भक्‍तगण उस समय जीवित भी थे। श्री वियोगी हरि ने लिखा है कि भक्‍त नामावली में सं. 1725 तक के भक्‍तों का वर्णन मिलता है। पता नहीं यह बात उन्‍होंने किस आधार पर लिखी है। यदि केवल राधावल्‍लभीय रसिक भक्‍तों को ही लें तो 'भक्‍त नामावली' में उन्‍ही के नाम मिलते हैं जो सं. 1660 के पूर्व प्रख्‍यात हो चुके थे। सत्रहवीं शती के उत्‍तरार्ध में प्रसिद्ध होने वाले रसिकों का उल्‍लेख उसमें नहीं है। 'भक्‍त नामावली' हिताचार्य के पुत्रों के परिचय तक ही सीमित रहती है, उनके पौत्रों प्रपौत्रों श्री दामोदर चन्‍द्र गोस्‍वामी सत्रहवीं शताब्‍दी के अंतिम दशको में खूब प्रसिद्ध हो चुके थे। इसी प्रकार दामोदर स्‍वामी, कल्‍याण पुजारी जैसे प्रसिद्ध वाणीकारों का उल्‍लेख 'भक्‍त नामावली' में नहीं है। यह दोनों महानुभाव सत्रहवीं शताब्‍दी के अंत तक प्रख्‍यात हो चुके थे। 'भक्‍त नामावली' के रचना-काल को देखते हुए व्‍यास जी का निकुंज-गमन सम्‍वत 1655 के लगभग ही ठहरता है।

'भक्‍त कवि व्‍यास जी' में व्‍यास जी के एक पद के आधार पर उनका निकुंज-गमन-काल से. 1665 के बाद में सिद्ध करने का परिश्रम पूर्ण प्रयास किया गया है। पद यह है-

अब सांचो ही कलियुग आयो।
पूत न कहो पिता को मानत करत आपनो भायो।।
बेटी बेचत संक न मानत दिन-दिन मोल बढ़ायो।
याहीं ते वर्षा मंद होत है पुण्‍य तें पाप सबायों।।
मथुरा खुदति कटत वृन्‍दावन मुनि जन सोच उपायो।।
इतनों दुख सहिबे के काजें काहे को व्‍यास जिबायों।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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