श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
इसके बाद लेखक ने पद के पाँचवें चरण में कही हुई 'मथुरा खुदत कटत वृन्दावन' वाली बात को उठाया है और उसको किसी तत्कालीन राजनैतिक घटना से सम्बन्धित करने की चेष्टा की है। 'वाकयाते जहाँगीर के राजत्वकाल के प्रथम वर्ष सं. 1663 की एक राजनैतिक घटना लिखी है, जिस में दिल्ली-आगरा सड़क पर खुसरो के आदमियों द्वारा लूटपाट करने और ग्रामीण प्रजा को सताने का वर्णन है। इसमें मथुरा और वृन्दावन के उत्पीडन का कहीं जिक़्र नहीं है। 'वाकयाते जहांगीर से यह भी मालूम होता है कि खुसरो के आगरे से निकलने के दूसरे दिन ही बादशाह भी उसके पीछे चल पड़ा था और उसने दिल्ली पहुँचने के पूर्व ही खुसरो को गिरफ्तार कर लिया था। खुसरो का विद्रोह, इस प्रकार दो दिन में ही समाप्त कर दिया गया। इस थोड़े से काल में खुसरो आगरा-दिल्ली सड़क से लगे हुए गामों में ही उपद्रव कर सका था और 'मथुरा खुदत, कटत वृन्दावन' वाली उक्ति को, कल्पना का जोर लगा कर भी, इस अल्पजीवी विद्रोह के साथ सम्बन्धित नहीं किया जा सकता। ‘मथुरा खुदत, कटत वृन्दावन’ वाली पंक्ति का उत्तरार्ध है ‘मुनिजन सोच उपायो’। इसका सीधा अर्थ यह है कि मथुरा के खुदने से और वृन्दावन के कटने से मुनिजनों-एकान्त वासी भक्त जनों को बहुत कष्ट हुआ। वह अकबर का राजत्व काल था और मथुरा-वृन्दावन की आबादी नित्य प्रति बढ़ रही थी। मथुरा में पुराने ध्वंसावशेषों को खोद कर नये मन्दिर और मकान बन रहे थे और वृन्दावन के वृक्षो को काट कर बसने के लिये स्थान बनाया जा रहा था। वृन्दावन की लताओं को ‘पारिजात’ मानने वाले व्यास जी एवं उनके समान अन्य रसिक भक्तों को इससे कष्ट होना स्वाभाविक था और उसी का उल्लेख व्यास जी ने इस पंक्ति में किया है। पद में उल्लेखित दोनों घटनायें अकबर-काल की होने के कारण इस पद की रचना सं. 1653-54 में हुई और इसके कुछ ही दिन बाद सं. 1655 के लगभग व्यास जी का निकुंज-वास हो गया। वाणी-समीक्षा: भक्त कवियों की सबसे बड़ी विशेषताएँ है, 1- वर्ण्य विषय के प्रति उत्कट अनुराग और उसके विविध सौन्दर्य-अंगों के प्रति तीव्र संवेदनशीलता। 2- भाव के उपस्थापन में निर्भीक आत्म-निर्भरता और अडिग श्रद्धा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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