श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
1- व्यासजी सुकुल सुमोखन के पुत्र थे और शास्त्र-निष्णात राज्य-सम्मानित विद्वान थे। 2- वे अपनी बयालीस वर्ष की आयु तक ओड़छे में रहे और फिर नवलदास बैरागी के साथ वृन्दावन चले गये। 3- वृन्दावन में उन्होंने श्रीहिताचार्य से दीक्षा ग्रहण की और उनकी बताई रीति से वाणी-निर्माण और भजन करने लगे। 4- इस प्रकार बहुत वर्षो तक वृन्दावन में रहने के बाद उनको हित प्रभु के विरह का दुख सहन करना पड़ा। 5- बहुत बड़ी आयु में उन्होंने शरीर-त्याग किया। कुछ दिन पूर्व श्रीवासुदेव गोस्वामी द्वारा रचित 'भक्त-कवि व्यासजी' नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ है। पुस्तक के द्वितीय अध्याय में लेखक ने 'अध्ययन के सूत्र' बतलाये है। इनमें से पहिला सूत्र नाभादास जी का छप्पय है और दूसरा ध्रुवदास जी की 'भक्त नामावली' के व्यासजी से सम्बन्धित तीने दोहे हैं। इन दोनों सूत्रों में व्यासजी की उपासना-पद्धति के अतिरिक्त, उनके जीवन-वृत्त का बहुत कम पता लगता है। तीसरा सूत्र भवगत मुदित जी कृत 'रसिक अनन्य माल' है। व्यासजी का जीवन-वृत्त सर्व प्रथम इसी में दिया गया है। 'रसिक अनन्य माल के कर्त्ता भवगत मुदितजी को लेखक ने व्यासजी का सम-सामयिक माना है और वे यह भी मानते है कि भगवत-मुदितजी चैतन्य-सम्प्रदाय के अनुयायी थे। उन्होंने 'रसिक अनन्य माल' का रचना-काल विक्रम की अठारहवीं शती का प्रारंभ ही माना है। चौथा सूत्र 'भक्तमाल की प्रियादास जी कृत टीका है जिसका निर्माण वि. सं. 1769 में हुआ था। इसके बाद विक्रम की उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों में रचित व्यासजी की 'जन्मोत्सव की बधाइयां' एवं उनका चरित्र लिखने वाले अन्य ग्रन्थों का उल्लेख है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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