हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 257

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


यहां स्‍वयं चरित्र कर्त्‍ता के शब्‍दों में व्‍यासजी के सबसे प्राचीन चरित्र का संक्षेप कर दिया है। इस चरित्र से निम्‍न-लिखित ऐतिहासिक तथ्‍य प्राप्‍त होते है:-

1- व्‍यासजी सुकुल सुमोखन के पुत्र थे और शास्‍त्र-निष्‍णात राज्‍य-सम्‍मानित विद्वान थे।

2- वे अपनी बयालीस वर्ष की आयु तक ओड़छे में रहे और फिर नवलदास बैरागी के साथ वृन्‍दावन चले गये।

3- वृन्‍दावन में उन्‍होंने श्रीहिताचार्य से दीक्षा ग्रहण की और उनकी बताई रीति से वाणी-निर्माण और भजन करने लगे।

4- इस प्रकार बहुत वर्षो तक वृन्‍दावन में रहने के बाद उनको हित प्रभु के विरह का दुख सहन करना पड़ा।

5- बहुत बड़ी आयु में उन्‍होंने शरीर-त्‍याग किया।

कुछ दिन पूर्व श्रीवासुदेव गोस्‍वामी द्वारा रचित 'भक्‍त-कवि व्‍यासजी' नामक पुस्‍तक का प्रकाशन हुआ है। पुस्‍तक के द्वितीय अध्‍याय में लेखक ने 'अध्‍ययन के सूत्र' बतलाये है। इनमें से पहिला सूत्र नाभादास जी का छप्‍पय है और दूसरा ध्रुवदास जी की 'भक्‍त नामावली' के व्‍यासजी से सम्‍बन्धित तीने दोहे हैं। इन दोनों सूत्रों में व्‍यासजी की उपासना-पद्धति के अतिरिक्‍त, उनके जीवन-वृत्‍त का बहुत कम पता लगता है।

तीसरा सूत्र भवगत मुदित जी कृत 'रसिक अनन्‍य माल' है। व्‍यासजी का जीवन-वृत्‍त सर्व प्रथम इसी में दिया गया है। 'रसिक अनन्‍य माल के कर्त्‍ता भवगत मुदितजी को लेखक ने व्‍यासजी का सम-सामयिक माना है और वे यह भी मानते है कि भगवत-मुदितजी चैतन्‍य-सम्‍प्रदाय के अनुयायी थे। उन्‍होंने 'रसिक अनन्‍य माल' का रचना-काल विक्रम की अठारहवीं शती का प्रारंभ ही माना है। चौथा सूत्र 'भक्‍तमाल की प्रियादास जी कृत टीका है जिसका निर्माण वि. सं. 1769 में हुआ था। इसके बाद विक्रम की उन्‍नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों में रचित व्‍यासजी की 'जन्‍मोत्‍सव की बधाइयां' एवं उनका चरित्र लिखने वाले अन्‍य ग्रन्‍थों का उल्‍लेख है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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