श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
'यह जु एक मन' को पद गायौ-व्यासहिं कह्यौ सुअर्थ बतायो। व्यास जी के चरित्र में भगवत मुदित जी ने यह भी लिखा है कि वे कार्तिक के आरम्भ में वृन्दावन पहुँचे थे। इस हिसाब से व्यास जी संवत 1591 के कार्तिक में हिताचार्य के शिष्य हुए थे। इससे पूर्व उनके पहुचंने की गुंजाइश भी नहीं है क्योंकि स्वयं हित प्रभु 1590 में वृन्दावन गये थे। भगवत मुदित जी के अनुसार सं. 1591 में व्यास जी की आयु 42 वर्ष की थी अत: उनका जन्म सं. 1549 में सिद्ध होता है। 'भक्त कवि व्यास जी' के विद्वान लेखक उपरोक्त सभी बातों से परिचित हैं किन्तु उन्होंने इन सब प्रमाणों को मानने से यह कह कर निषेध कर दिया है कि 'रसिक अनन्य माल में व्यास जी का दीक्षा-काल[1] उनके ही प्रसंग में नहीं दिया गया है, तथा ग्रन्थ का उद्देश्य किसी प्रामाणिक इतिहास लिखने का न होकर श्री हित हरिवंश जी की महिमा का कथन मात्र था। इस बात को लेखक उस हालत में कहते है जब उनको यह मालुम है कि इस ग्रन्थ के कर्ता श्री हित हरिवंश के अनुयायी नहीं थे! भगवत मुदित जी को श्री हित हरिवंश एवं उनकी उपासना पद्धति से अनुराग था, इसलिये वे हित-धर्मियों के प्रथम इतिहास को लिखने में प्रवृत हुए थे। उनसे हम अनुचित पक्षपात की आशंका नहीं रख सकते। भवगत मुदित जी ने जिन महात्माओं का चरित्र लिखा है उनमें से अधिकांश के वे सम सामयिक हैं अत: 'रसिक अनन्य माल' की प्रामाणिकता प्रमाणित है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन अभी तक नहीं हुआ है, इसीलिये राधावल्लभीय महात्माओं का इति वृत्त स्थिर नहीं हो पाया है। आचार्य शुल्क भी, डाक्टर राम कुमार वर्मा जैसे विद्वानों ने व्यास जी का वृन्दावन-गमन-काल सं. 1622 में लिख दिया है। इसका एक बुरा परिणाम यह हुआ है कि रीहित हरिवंश का निकुंज-गमन काल भी विवाद-ग्रस्त बन गया है। सम्प्रदाय के सम्पूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थों में एवं पुराने कागजातों में यह निर्विवाद रूप से सं. 1609 बतलाया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वृन्दावन आगमन-काल
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