हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 258

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


इन सब 'सूत्रों को एकत्रित करने में एवं उनकी छान-बीन करने में लेखक ने सराहनीय परिश्रम किया है किन्‍तु उनकी एक बात समझ में नहीं आती। उन्‍होंने व्‍यास जी का इति-वृत्‍त लिखने में रसिक अनन्‍य माल में दिये गये सर्वाधिक प्राचीन एवं विशद चरित्र का उपयोग बहुत कम किया है और उनके सम्‍पूर्ण चरित्र को 'जन्‍म बधाइयों' एवं बीसवी शताब्‍दी में रचित ग्रन्‍थों पर आधारित कर दिया है। उन्‍नीसवी शती के शेष में रचित एक जन्‍म-बधाई के आधार पर वे व्‍यास जी का जन्‍म संवत 1567 में स्थिर कर देते हैं। 'रसिक अनन्‍य माल' के अनुसार उनका जन्‍म सम्‍वत 1549 ठहरता है। उक्‍त ग्रन्‍थ में व्‍यास जी के चरित्र में केवल इतना लिखा है कि वे 42 वर्ष की आयु में वृन्‍दावन गये थे। इतने मात्र से उनके वृन्‍दावन गमन काल का पता नहीं चलता किन्‍तु भवगत मुदित जी ने राजा परमानंद के चरित्र में बतलाया है कि वे सम्‍वत 1592 की भादों सुदी नवमी को हिताचार्य के शिष्‍य हुए थे और व्‍यास जी इसके पूर्व हित प्रभु के शिष्‍य बन चुके थे। राजा परमानंद ठठ्ठा (सिंध में हुंमायू की आरे से सूबेदार थे और पूरनदास नाम के हित प्रभु के एक शिष्‍य के सत्‍संग से हित धर्मी बने थे। पूरनदास ने ठठ्ठे पहुँच कर राजा परमानंद को व्‍यास जी के शिष्‍य होने की घटना सुनाई थी।

'यह जु एक मन' को पद गायौ-व्‍यासहिं कह्यौ सुअर्थ बतायो।
राजा के मन निश्‍चय आई-गुरु हरिवंश करो सुखदाई।।

व्‍यास जी के चरित्र में भगवत मुदित जी ने यह भी लिखा है कि वे कार्तिक के आरम्‍भ में वृन्‍दावन पहुँचे थे। इस हिसाब से व्‍यास जी संवत 1591 के कार्तिक में हिताचार्य के शिष्‍य हुए थे। इससे पूर्व उनके पहुचंने की गुंजाइश भी नहीं है क्‍योंकि स्‍वयं हित प्रभु 1590 में वृन्‍दावन गये थे। भगवत मुदित जी के अनुसार सं. 1591 में व्‍यास जी की आयु 42 वर्ष की थी अत: उनका जन्‍म सं. 1549 में सिद्ध होता है।

'भक्‍त कवि व्‍यास जी' के विद्वान लेखक उपरोक्‍त सभी बातों से परिचित हैं किन्‍तु उन्‍होंने इन सब प्रमाणों को मानने से यह कह कर निषेध कर दिया है कि 'रसिक अनन्‍य माल में व्‍यास जी का दीक्षा-काल[1] उनके ही प्रसंग में नहीं दिया गया है, तथा ग्रन्‍थ का उद्देश्‍य किसी प्रामाणिक इतिहास लिखने का न होकर श्री हित हरिवंश जी की महिमा का कथन मात्र था। इस बात को लेखक उस हालत में कहते है जब उनको यह मालुम है कि इस ग्रन्‍थ के कर्ता श्री हित हरिवंश के अनुयायी नहीं थे! भगवत मुदित जी को श्री हित हरिवंश एवं उनकी उपासना पद्धति से अनुराग था, इसलिये वे हित-धर्मियों के प्रथम इतिहास को लिखने में प्रवृत हुए थे। उनसे हम अनुचित पक्षपात की आशंका नहीं रख सकते। भवगत मुदित जी ने जिन महात्‍माओं का चरित्र लिखा है उनमें से अधिकांश के वे सम सामयिक हैं अत: 'रसिक अनन्‍य माल' की प्रामाणिकता प्रमाणित है। इस ग्रन्‍थ का प्रकाशन अभी तक नहीं हुआ है, इसीलिये राधावल्‍लभीय महात्‍माओं का इति वृत्त स्थिर नहीं हो पाया है। आचार्य शुल्‍क भी, डाक्‍टर राम कुमार वर्मा जैसे विद्वानों ने व्‍यास जी का वृन्‍दावन-गमन-काल सं. 1622 में लिख दिया है। इसका एक बुरा परिणाम यह हुआ है कि रीहित हरिवंश का निकुंज-गमन काल भी विवाद-ग्रस्‍त बन गया है। सम्‍प्रदाय के सम्‍पूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्‍थों में एवं पुराने कागजातों में यह निर्विवाद रूप से सं. 1609 बतलाया गया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वृन्‍दावन आगमन-काल

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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