बंटी कुमार (वार्ता | योगदान) |
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इस ज्ञान और इस सत्य में सचेतन तथा संपूर्ण रूप से निवास करने का अर्थ है अहं से मुक्त होना तथा माया के घेरे को तोड़कर उससे बाहर निकलना। अन्य सब उच्चतम धर्म इस धर्म के लिये एक तैयारी मात्र है, और समस्त योग केवल एक साधन है जिसके द्वारा हम अपनी सत्ता के अधीश्वर और परम पुरुष एवं आत्मा के साथ पहने किसी-न-किसी प्रकार का मिलन और अंत में पूर्ण ज्योति प्राप्त होने पर सर्वागीण मिलन लाभ कर सकते हैं। सबसे महान योगमार्ग है-अपनी प्रकृति की सब कठिनाइयों और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये संपूर्ण प्रकृति के इन अंतर्वासी ईश्वर की शरण लेना अपनी संपूर्ण ज्ञान संकल्प और कर्म के साथ सर्वभावेन, अपनी सचेतन सत्ता और यंत्रात्मक प्रकृति के सभी भावों के साथ उन्ही अंतर्वासी ईश्वर की ओर मुड़ना। और जब हम सदा-सर्वदा तथा पूर्ण रूप से ऐसा कर सकेंगे तब भागवत ज्योति प्रीति और शक्ति हमें अपने अधिकार में कर लेगीं, हमारी सत्ता और हमारे करणों दोनों को परिपूरित कर देंगी और हमारे अंतःपुरुष तथा जीवन को घेरनेवाले समस्त संदेहों कठिनाइयों द्विविधओं और विपदाओं में से हमें सुरक्षित ले चलेंगी, हमें परा शांति और हमारे अमृत एवं शाश्वत पद की आध्यात्मिक स्वंत्रता की ओर ले जायेगी, कारण, समस्त धर्मो का और अपने योग के गहनतम सार का प्रतिपादन करने के बाद कि आध्यात्मिक ज्ञान के रूपांतरकारी प्रकाश के द्वारा मानव-मन के समक्ष प्रकाशित सभी प्राथमिक रहस्यों के परे, गुह्मात यह एक और भी गभीर एवं गुह्मतर सत्य है, गीता एकदम ही यह कहती है कि अभी भी एक परम वचन है जो उसे कहना है और अभी भी एक सर्वाधिक गुह्म सत्य है। | इस ज्ञान और इस सत्य में सचेतन तथा संपूर्ण रूप से निवास करने का अर्थ है अहं से मुक्त होना तथा माया के घेरे को तोड़कर उससे बाहर निकलना। अन्य सब उच्चतम धर्म इस धर्म के लिये एक तैयारी मात्र है, और समस्त योग केवल एक साधन है जिसके द्वारा हम अपनी सत्ता के अधीश्वर और परम पुरुष एवं आत्मा के साथ पहने किसी-न-किसी प्रकार का मिलन और अंत में पूर्ण ज्योति प्राप्त होने पर सर्वागीण मिलन लाभ कर सकते हैं। सबसे महान योगमार्ग है-अपनी प्रकृति की सब कठिनाइयों और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये संपूर्ण प्रकृति के इन अंतर्वासी ईश्वर की शरण लेना अपनी संपूर्ण ज्ञान संकल्प और कर्म के साथ सर्वभावेन, अपनी सचेतन सत्ता और यंत्रात्मक प्रकृति के सभी भावों के साथ उन्ही अंतर्वासी ईश्वर की ओर मुड़ना। और जब हम सदा-सर्वदा तथा पूर्ण रूप से ऐसा कर सकेंगे तब भागवत ज्योति प्रीति और शक्ति हमें अपने अधिकार में कर लेगीं, हमारी सत्ता और हमारे करणों दोनों को परिपूरित कर देंगी और हमारे अंतःपुरुष तथा जीवन को घेरनेवाले समस्त संदेहों कठिनाइयों द्विविधओं और विपदाओं में से हमें सुरक्षित ले चलेंगी, हमें परा शांति और हमारे अमृत एवं शाश्वत पद की आध्यात्मिक स्वंत्रता की ओर ले जायेगी, कारण, समस्त धर्मो का और अपने योग के गहनतम सार का प्रतिपादन करने के बाद कि आध्यात्मिक ज्ञान के रूपांतरकारी प्रकाश के द्वारा मानव-मन के समक्ष प्रकाशित सभी प्राथमिक रहस्यों के परे, गुह्मात यह एक और भी गभीर एवं गुह्मतर सत्य है, गीता एकदम ही यह कहती है कि अभी भी एक परम वचन है जो उसे कहना है और अभी भी एक सर्वाधिक गुह्म सत्य है। | ||
− | | | + | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|link=गीता प्रबंध -अरविन्द पृ. 551]] |
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03:34, 11 जून 2016 का अवतरण
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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