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'''औरौ आइ निकसिहैं तातै, आगै है सो लीजै ।।''' | '''औरौ आइ निकसिहैं तातै, आगै है सो लीजै ।।''' | ||
'''जहाँ तहाँ तै सब आवैगे सुनि सुनि सस्तौ नाम ।''' | '''जहाँ तहाँ तै सब आवैगे सुनि सुनि सस्तौ नाम ।''' | ||
− | '''अब तौ | + | '''अब तौ पर्यौ रहैगौ दिन-इिन तुमकौं ऐसौ काम ।।''' |
'''यह तो बिरद प्रसिद्ध भयौ जग, लोक-लोक जस कीन्हौ ।''' | '''यह तो बिरद प्रसिद्ध भयौ जग, लोक-लोक जस कीन्हौ ।''' | ||
'''सूरदास प्रभु समुझि देखियै मैं बड़ तोहि करि दीन्हौं ।।246।।'''</poem> | '''सूरदास प्रभु समुझि देखियै मैं बड़ तोहि करि दीन्हौं ।।246।।'''</poem> |
01:05, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण
सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(246) तब तक झटपट आप मेरी पीड़ा क्यों नहीं हरण कर लेते, जब तक दूसरे (पापी उद्धार के लिये) न आ पहुँचें; फिर तो भीड़ आ पड़ेगी। अभी ही अवकाश का समय है, अतः स्वस्थ चित्त से मुझे तो निर्भय बना दीजिये; क्योंकि (शीघ्र ही) दूसरे भी (यहाँ) आ निकलेंगे (उद्धार के लिये उपस्थित हो जायेंगे)। अतः जो सामने है, उसे तो (शरण में) ले लीजिये! आपका सस्ता (सुलभ, सुगम) नाम सुन-सुन कर जहाँ-तहाँ (स्थान-स्थान) से सब आयेंगे। (ऐसी दशा में) आपको तो अब प्रति दिन (सदा) ही ऐसा (पतितोद्धार का) काम पड़ता ही रहेगा। आपका यह यश तो संसार में प्रसिद्ध हो गया, सभी लोकों में आपके सुयश का विस्तार मैंने कर दिया (कि आप पतित पावन हैं)। सूरदास जी कहते हैं - हे स्वामी! आप विचार करके देखिये कि मैंने ही आपको बड़ा बना दिया है। (मुझ-जैसे पतित का उद्धार करने से ही आप बड़े कहलाते हैं।)
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