सहज गीता -रामसुखदास पृ. 9

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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दूसरा अध्याय

(सांख्य योग)

इस शरीरी को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता और हवा सुखा नहीं सकती। इसका कारण यह है कि शरीरी कटने वाली, जलने वाली, गीला होने वाली अथवा सूखने वाली वस्तु है ही नहीं। इसमें किसी भी क्रिया का प्रवेश नहीं होता। यह नित्य-निरंतर रहने वाला, संपूर्ण देश, काल आदि में विराजमान, अचल अर्थात् स्थिर स्वभाववाला, हिलने-डुलने की क्रिया से रहित और अनादि है। यह शरीरी स्थूल रूप से देखने में नहीं आता। यह चिन्तन का विषय भी नहीं है। इसमें कभी किंचिन्मात्र भी परिवर्तन नहीं होता। इसलिए शरीरी को लेकर शोक करना तुम्हारी बिलकुल ही बेसमझी है।
हे महाबाहो! यदि तुम सिद्धांत से विरुद्ध बात भी मान लो कि ‘शरीरी नित्य जन्मने और मरने वाला है’, तो भी तुम्हें शोक नहीं होना चाहिए। कारण कि जो जन्मेगा, वह मरेगा ही और मरेगा, वह जन्मेगा ही- इस नियम को कोई टाल नहीं सकता। यदि साधारण दृष्टि से देखें तो सभी प्राणी स्वप्न की तरह जन्म से पहले भी नहीं दीखते थे और मरने के बाद भी नहीं दीखेंगे, केवल बीच में ही दीख रहे हैं। जो आदि और अंत में नहीं होता, वह बीच में भी नहीं होता- यह सिद्धांत है। इस दृष्टि से भी किसी भी प्राणी के लिए शोक करना नहीं बनता।
यह शरीरी बड़ा विलक्षण, अलौकिक तत्त्व है; क्योंकि यह इन्द्रिय-मन-बुद्धि से सर्वथा परे है। इसलिए इसको जानना, इसका वर्णन करना और इसके विषय में सुनना सांसारिक विषयों की तरह नहीं होता, अपितु उससे सर्वथा विलक्षण, आश्चर्यजनक होता है। शास्त्र, गुरु आदि से सुनकर भी कोई इस शरीरी को नहीं जान सकता। यह तो केवल अपने-आपसे ही जाना जा सकता है।
हे भारत! तुम निश्चित जान लो कि शरीरी का नाश कभी किसी भी तरह से हो ही नहीं सकता और कोई कर भी नहीं सकता। इसलिए तुम्हें किसी भी प्राणी के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
(दूसरे दार्शनिक ग्रंथों में अविनाशी और नाशवान् का ब्रह्म और जीव, आत्मा और अनात्मा, प्रकृति और पुरुष आदि नामों से वर्णन किया गया है; परंतु भगवान् ने उपर्युक्त प्रकरण में दार्शनिक नामों का प्रयोग न करके सबके अनुभव के अनुसार ‘शरीर और शरीरी, देह और देही’ आदि नामों का प्रयोग किया है। कारण यह है कि भगवान् मनुष्य को कोरा दार्शनिक विद्वान् न बनाकर अनुभव कराना चाहते हैं।)


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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