सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय(विश्वरुपदर्शन योग)अनन्त ब्रह्माण्ड जिनके शरीर के किसी भी एक अंश में विद्यमान हैं, वे भगवान मेरे सारथि बनकर हाथ में घोड़ों की लगाम तथा चाबुक लिए बैठे हैं और मेरी आज्ञा का पालन करते हैं- इस तरफ दृष्टि जाते ही अर्जुन भगवान् की महती कृपा को देखकर भावविभोर हो गये और बोले- केवल मुझ पर कृपा करने के लिए आपने जो परम गोपनीय आध्यात्मिक बात (कि सबके मूल में मैं ही हूँ) कही है, उससे मेरा मोह चला गया है। कारण कि हे कमलनयन! मैंने आपसे प्राणियों की उत्पत्ति तथा प्रलय का विस्तार से वर्णन सुना है और आपका अविनाशी माहात्म्य से भी सुना है। हे पुरुषोत्तम! आपने (सातवें से दसवें अध्याय तक) मुझसे अपने अलौकिक प्रभाव का जो कुछ वर्णन किया है, वह ठीक ऐसा ही है। हे परमेश्वर! अब मैं आपका वह ईश्वरीय रूप देखना चाहता हूँ, जिसके एक अंश में अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड व्याप्त हैं। हे प्रभो! यदि आप ऐसा मानते हैं कि मैं आपके उस ईश्वरीय रूप को देख सकता हूँ, तो फिर हे योगेश्वर! आप अपने उस अविनाशी रूप के दर्शन कराइये। |
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