सहज गीता -रामसुखदास पृ. 60

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

Prev.png

ग्यारहवाँ अध्याय

(विश्वरुपदर्शन योग)

अनन्त ब्रह्माण्ड जिनके शरीर के किसी भी एक अंश में विद्यमान हैं, वे भगवान मेरे सारथि बनकर हाथ में घोड़ों की लगाम तथा चाबुक लिए बैठे हैं और मेरी आज्ञा का पालन करते हैं- इस तरफ दृष्टि जाते ही अर्जुन भगवान् की महती कृपा को देखकर भावविभोर हो गये और बोले- केवल मुझ पर कृपा करने के लिए आपने जो परम गोपनीय आध्यात्मिक बात (कि सबके मूल में मैं ही हूँ) कही है, उससे मेरा मोह चला गया है। कारण कि हे कमलनयन! मैंने आपसे प्राणियों की उत्पत्ति तथा प्रलय का विस्तार से वर्णन सुना है और आपका अविनाशी माहात्म्य से भी सुना है। हे पुरुषोत्तम! आपने (सातवें से दसवें अध्याय तक) मुझसे अपने अलौकिक प्रभाव का जो कुछ वर्णन किया है, वह ठीक ऐसा ही है। हे परमेश्वर! अब मैं आपका वह ईश्वरीय रूप देखना चाहता हूँ, जिसके एक अंश में अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड व्याप्त हैं। हे प्रभो! यदि आप ऐसा मानते हैं कि मैं आपके उस ईश्वरीय रूप को देख सकता हूँ, तो फिर हे योगेश्वर! आप अपने उस अविनाशी रूप के दर्शन कराइये।
अर्जुन की प्रार्थना सुनकर (उन्हें विराट् रूप देखने की आज्ञा देते हुए) श्रीभगवान् बोले- हे पार्थ! तुम मेरे एक नहीं, सैकड़ों हजारों ऐसे अलौकिक रूपों को देखो, जिनकी बनावट भी तरह-तरह की है, रंग भी तरह-तरह के हैं और आकृतियाँ भी तरह-तरह की हैं। हे भारत! मेरे उन दिव्य रूपों में तुम बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार- इन तैंतीस (प्रकार)- के देवताओं को और उनचास मरुद्गणों को भी देखो। इनके सिवाय जिन्हें तुमने पहले कभी नहीं देखा है, ऐसे आश्चर्यजनक रूपों को भी तुम प्रत्यक्ष देख लो। हे गुडाकेश! तुम मेरे इस शरीर के किसी भी एक अंश में चराचर सहित संपूर्ण जगत् को अभी देख लो, इसमें देरी का काम नहीं है। इसके सिवाय तुम्हारे मन में और भी जो कुछ (युद्ध का परिणाम) देखने की इच्छा हो, वह भी देख लो।

Next.png

संबंधित लेख

सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः