सहज गीता -रामसुखदास पृ. 49

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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नौवाँ अध्याय

(राज विद्याराज गुह्य योग)

श्रीभगवान् बोले- यह अत्यंत गोपनी ‘विज्ञानसहित ज्ञान’ मैं तुम्हारे लिए फिर अच्छी तरह से कहूँगा; क्योंकि तुम दोषदृष्टि से रहित हो। इसे जानकर तुम जन्म-मरण रूप संसार से मुक्त हो जाओगे। यह ‘विज्ञानसहित ज्ञान’ संपूर्ण विद्याओं का राज है; क्योंकि इसे जानने के बाद फिर कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता। यह संपूर्ण गोपनीयों का भी राजा है; क्योंकि संसार में इससे बड़ी दूसरी कोई रहस्य की बात है ही नहीं। यह परम पवित्र तथा अति श्रेष्ठ है। इसका फल भी प्रत्यक्ष है। यह धर्ममय और अविनाशी है। इसे प्राप्त करना भी बहुत सुगम है। हे परन्तप! जो मनुष्य इस विज्ञानसहित ज्ञान की महिमा पर श्रद्धा नहीं रखते, वे मुझे प्राप्त न होने पर मृत्यु रूप संसार में ही बार-बार जन्मते-मरते रहते हैं।
यह सब संसार मेरे निराकार रूप से व्याप्त है। संपूर्ण प्राणी मुझमें स्थित हैं, पर वास्तव में मैं उनमें तथा वे मुझमें स्थित नहीं हैं अर्थात् मैं उनसे सर्वथा निर्लिप्त हूँ। मैं संपूर्ण प्राणियों को उत्पन्न करने वाला, उनको धारण करने वाला तथा उनका भरण-पोषण करने वाला हूँ। परंतु मैं उन प्राणियों में स्थित नहीं हूँ अर्थात् उनसे सर्वथा निर्लिप्त हूँ। जैसे सब जगह घूमने वाली महान् वायु सदा आकाश में ही रहती है, आकाश से अलग नहीं हो सकती, ऐसे ही अनेक योनियों तथा लोकों में घूमने वाले संपूर्ण प्राणी नित्य-निरंतर मुझमें ही स्थित रहते हैं, मुझसे अलग नहीं हो सकते- यह बात तुम दृढ़ता से मान लो।
हे कौन्तेय! महाप्रलय के समय (ब्रह्मा जी की सौ वर्ष की आयु पूरी होने पर) संपूर्ण प्राणी अपने-अपने कर्मों को, स्वभाव को लेकर मुझमें लीन हो जाते हैं। फिर महासर्ग के समय मैं पुनः उन प्राणियों के कर्मों के अनुसार उनकी रचना करता हूँ। इस प्रकार जब तक अपने स्वभाव के परवश हुए वे प्राणी मुक्त नहीं होते, तब तक अपनी प्रकृति को वश में करके मैं प्रत्येक महासर्ग के आरंभ में उन प्राणियों की बार-बार रचना करता रहता हूँ। परंतु हे धनंजय! उन सृष्टि-रचना आदि कर्मों में आसक्त न होने से तथा उदासीन की तरह रहने से मुझे वे कर्म बाँधते नहीं।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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