सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय(ज्ञान कर्म संन्यास योग)श्रीभगवान् बोले- मैंने तुम्हें जिस कर्मयोग का उपदेश दिया है, वह कोई नया नहीं है, अपितु अनादि है। इस अविनाशी कर्मयोग का उपदेश मैंने सर्वप्रथम सूर्य को दिया था। फिर सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु को और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को इसका उपदेश दिया। इन सभी राजाओं ने गृहस्थ में रहते हुए ही कर्मयोग के द्वारा परमात्मतत्त्व को प्राप्त किया। हे परन्तप! इस प्रकार राजर्षियों में इस कर्मयोग की परंपरा चली। परंतु बहुत समय बीत जाने के कारण वह कर्मयोग इस मनुष्यलोक में लुप्त हो गया है। तुम मेरे भक्त और प्रिय सखा हो, इसलिए वही यह पुरातन कर्मयोग आज मैंने तुमसे कहा है। तुम मेरे भक्त और प्रिय सखा हो, इसलिए वही यह पुरातन कर्मयोग आज मैंने तुमसे कहा है। यह बड़े उत्तम रहस्य की बात है, जिसे मैं तुम्हारे सामने प्रकट कर रहा हूँ। |
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