सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
दसवाँ अध्याय(विभूति योग)अर्जुन की प्रार्थना स्वीकार करते हुए श्रीभगवान् बोले- हाँ, ठीक है। पर मैं अपनी दिव्य विभूतियों को तेरे लिए संक्षेप से कहूँगा; क्योंकि हे कुरुश्रेष्ठ! मेरी विभूतियों के विस्तार का अंत नहीं है। हे गुडाकेश (नींद को जीतने वाले अर्जुन)। संपूर्ण प्राणियों के आदि, मध्य तथा अंत में मैं ही हूँ। संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरण में स्थित 'आत्मा' भी मैं ही हूँ। अदिति के पुत्रों में 'विष्णु' (वामन) और प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला 'सूर्य' भी मैं हूँ। उनचास मरुतों का 'तेज' और सत्ताईस नक्षत्रों का अधिपति 'चंद्रमा' भी मैं हूँ। वेदों में 'सामवेद', देवताओं में 'इंद्र', इन्द्रियों में 'मन', प्राणियों में 'प्राणशक्ति', ग्यारह रुद्रों में 'शंकर', यक्ष-राक्षसों में 'कुबेर', आठ वस्तुओं में 'अग्नि' और शिखर वाले पर्वतों में 'सुमेरु' भी मैं हूँ।
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