सहज गीता -रामसुखदास पृ. 57

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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दसवाँ अध्याय

(विभूति योग)

अर्जुन की प्रार्थना स्वीकार करते हुए श्रीभगवान् बोले- हाँ, ठीक है। पर मैं अपनी दिव्य विभूतियों को तेरे लिए संक्षेप से कहूँगा; क्योंकि हे कुरुश्रेष्ठ! मेरी विभूतियों के विस्तार का अंत नहीं है। हे गुडाकेश (नींद को जीतने वाले अर्जुन)। संपूर्ण प्राणियों के आदि, मध्य तथा अंत में मैं ही हूँ। संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरण में स्थित 'आत्मा' भी मैं ही हूँ। अदिति के पुत्रों में 'विष्णु' (वामन) और प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला 'सूर्य' भी मैं हूँ। उनचास मरुतों का 'तेज' और सत्ताईस नक्षत्रों का अधिपति 'चंद्रमा' भी मैं हूँ। वेदों में 'सामवेद', देवताओं में 'इंद्र', इन्द्रियों में 'मन', प्राणियों में 'प्राणशक्ति', ग्यारह रुद्रों में 'शंकर', यक्ष-राक्षसों में 'कुबेर', आठ वस्तुओं में 'अग्नि' और शिखर वाले पर्वतों में 'सुमेरु' भी मैं हूँ।
हे पार्थ! पुरोहितों में मुख्य 'बृहस्पति' को मेरा स्वरूप समझो। सेनापतियों में 'स्कन्द' (कार्तिकेय), जलाशयों में 'समुद्र' महर्षियों में 'भृगु' और वाणियों (शब्दों) में 'एक अक्षर' (प्रणव अर्थात् ओंकार) मैं हूँ। संपूर्ण यज्ञों में 'जपयज्ञ', स्थिर रहने वालों में 'हिमालय', वृक्षों 'पीपल', देवर्षियों में 'नारद', गंधर्वों में 'चित्ररथ' और जन्मजात सिद्धों में 'कपिल मुनि' मैं हूँ। घोड़ों में समुद्र मन्थन के समय अमृत के साथ प्रकट होने वाले 'उच्चैःश्रवा' नामक घोड़े को, श्रेष्ठ हाथियों में 'ऐरावत' नाम हाथी को और मनुष्यों में संपूर्ण प्रजा का पालन, संरक्षण तथा शासन करने वाले 'राजा' को मेरी विभूति मानो। अस्त्र-शस्त्रों में दधीचि ऋषि की हड्डियों से बना 'वज्र', धेनुओं में समुद्र-मन्थन से प्रकट हुई 'कामधेनु' और धर्म के अनुकूल संतान-उत्पत्ति का हेतु 'कामदेव' मैं हूँ। सर्पो में 'वासु की', नागों में 'शेषनाग', जल-जन्तुओं का अधिपति 'वरुण', सात पितरों में 'अर्यमा' और प्राणियों पर शासन करने वालों में 'यमराज' मैं हूँ।


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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