श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 67

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
दूसरा अध्याय

एषा ब्राह्री स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्म निर्वाणमृच्छति ॥72॥

अर्जुन! यह ब्राह्मी स्थिति है। इसको पाकर (मनुष्य) फिर मोहित नहीं होता, अन्तकाल में भी इस स्थिति में स्थित होकर आत्यन्तिक सुखरूप ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।। 72।।

ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां
योगशास्त्रे श्रीकृष्णर्जुनसंवादे साङ्ख्ययोगो
नाम द्वितीयोऽध्यायः ।। 2।।

एषा नित्यात्मज्ञानपूर्विका असंग कर्मणि स्थितिः स्थितधीलक्षणा ब्राह्मी ब्रह्मप्रापिका। ईदृशीं कर्मस्थितिं प्राप्य न विमुह्यति न पुनः संसारम् आप्नोति। अस्यां स्थित्याम् अन्तिमें अपि वयसि स्थित्वा ब्रह्म निर्वाणम् ऋच्छति निर्वाणमयं ब्रह्म गच्छति, सुखैकतानम् आत्मानम् आप्नोति इत्यर्थः।

नित्य आत्मा के ज्ञान से युक्त, आसक्ति रहित कर्मों में होने वाली यह स्थिर बुद्धिरूपा स्थिति ब्राह्मी-ब्रह्म को प्राप्त कराने वाली स्थिति है। इस प्रकार की कर्मस्थिति को पाकर पुरुष फिर मोहित नहीं होता- फिर संसार को प्राप्त नहीं होता। (यहाँ तक कि) अन्तिम आयु में भी इस स्थिति में स्थित होकर मनुष्य निर्वाण ब्रह्म को पा जाता है, अर्थात् एकतान सुख स्वरूप आत्मा को प्राप्त हो जाता है।

एवम् आत्मयाथात्म्यं युद्धाख्यस्य च कर्मणः तत्प्राप्तिसाधनताम् अजानतः शरीरात्मज्ञानेन मोहितस्य तेन च मोहेन युद्धात् निवृत्तस्य तन्मोहशान्तये नित्यात्मविषया साङ्ख्यबुद्धिः तत्पूर्विका च असंगकर्मानुष्ठानरूपकर्मयोगविषया बुद्धिः स्थितप्रज्ञतायोगसाधनभूता द्वितीयेऽध्याये प्रोक्ता। तदुक्तम्-

‘नित्यात्मासंगकर्मेहागोचरा साड्ख्ययोगधीः।
द्वितीये स्थितधीलक्ष्या प्रोक्ता तन्मोहशान्तये ।।’ (गीतार्थसंग्रहे 6) इति ।। 72।।

इस प्रकार दूसरे अध्याय में आत्मा के यथार्थस्वरूप को और युद्धरूप कर्म उस आत्मा की प्राप्ति का साधन है, इस बात को न जानने वाले, शरीर को आत्मा समझकर मोहित हुए और उसी मोह के कारण युद्ध से विरत हुए अर्जुन के प्रति उसके मोह की शान्ति के लिये भगवान् ने नित्य आत्मविषयक सांख्यबुद्धि और उसके सहित आसक्तिरहित कर्मानुष्ठान रूप कर्मयोग विषयक बुद्धि बतलायी- स्थितप्रज्ञतारूप योग को प्राप्त कराने वाली बुद्धि का वर्णन किया। ऐसा ही कहा गया है-‘दूसरे अध्याय में उस अर्जुन के मोह की शान्ति के लिये नित्यात्मज्ञान विषयक सांख्यबुद्धि और आसक्ति रहित कर्मानुष्ठानविषयक योगबुद्धि, जिनका साध्य ‘स्थितप्रज्ञता’ है, भगवान् ने कही’ ।। 72।।

इति श्रीमद्भगवद्रामानुजाचार्य विरचिते श्रीमद्भगवतद्गीताभाष्ये द्वितीयोऽध्यायः ।।2।।
इस प्रकार श्रीमान् भगवान् रामानुजाचार्य द्वारा रचित श्रीमद्भगवतद्गीता-भाष्य के हिन्दी भाषानुवाद का दूसरा अध्याय पूरा हुआ।। 2।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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