श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
सतरहवाँ अध्याय
त्रयाणाम् 'ॐ तत् सत्' इति शब्दानाम् अन्वयप्रकारो वर्ण्यते। प्रथमम् 'ओम' इति शब्दस्य अन्वयप्रकारम् आह-
ॐ, तत् और सत्- इन तीनों शब्दों के सम्बन्ध का प्रकार बतलाया जाता है। इनमें भी पहले ‘ॐ’ इस शब्द के सम्बन्ध का प्रकार बतलाया जाता है-
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतप:क्रिया: ।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ता: सततं ब्रह्मावादिनाम्॥24॥
इसलिये वेदवादियों की शास्त्रोक्त यज्ञ, दान और तप की क्रियाएँ सदा ‘ॐ’ ऐसा उच्चारण करके हुआ करती हैं।।24।।
तस्माद् ब्रह्मवादिनां वेदवादिनां त्रैवर्णिकानां यज्ञदानतपःक्रियाः विधानोक्ताः वेदविधानोक्ताः आदौ ‘ओम्’ इति उदाहृत्य सततं सर्वदा प्रवर्तन्ते। वेदाः च ‘ओम्’ इति उदाहृत्य आरभ्यन्ते।
(वैदिक कर्मों के साथ ‘ॐ’ का सम्बन्ध है) इसलिये ब्रह्मवादी- वेदपाठी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की वेद में विधान की हुई यज्ञ, दान और तपरूपी सारी क्रियाएँ सदा सर्वदा पहले ‘ॐ’ इस शब्द का उच्चारण करके आरम्भ की जाती हैं, तथा वेद भी ॐकार का उच्चारण करके ही आरम्भ किये जाते हैं।
एवं वेदानां वैदिकानां च यज्ञादीनां कर्मणाम् ‘ॐ’ इति शब्दान्वयो वर्णितः। ओम् इतिशब्दान्वितवेद धारणात् तदन्वितयज्ञादिकर्मकरणात् च ब्राह्मणशब्दनिर्दिष्टानां त्रैवर्णिकानाम् अपि ‘ओम्’ इति शब्दान्वयो वर्णितः।।24।।
इस प्रकार वेदों के साथ और वैदिक यज्ञादि कर्मों के साथ ॐ इस शब्द का सम्बन्ध बतलाया गया। ब्राह्मण नाम से जिनका संकेत किया गया है, वे त्रैवर्णिक (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) ॐ इस शब्द से सम्बन्धित वेदों को धारण करते हैं, तथा उसी शब्द से सम्बन्धित यज्ञादि कर्म करते हैं, इसलिये उन तीनों के साथ भी ‘ॐ’ इस शब्द का सम्बन्ध बतलाना हो गया है।।24।।
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