श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 277

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
ग्यारहवाँ अध्याय

त्वामादिदेव: पुरुष: पुराण
स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥38॥

आप आदि देव, पुरातन पुरुष, इस विश्व के परम निधान, (सबके) जानने वाले हैं और जानने योग्य तथा परमधाम भी आप ही हैं। अनन्तरूप! आपसे यह सम्पूर्ण विश्व व्याप्त है।। 38।।

त्वम् आदिदेवः पुरुषः पुराणः त्वम् अस्य विश्वस्य परं निधारम्, निधीयते त्वयि विश्वम् इति त्वम् अस्य विश्वस्य परं निधानम्, विश्वस्य शरीरभूतस्य आत्मतया परमाधारभूतः त्वम् एव इत्यर्थः।

आप आदिदेव पुरातन पुरुष और इस विश्व के परम निधान हैं। यह विश्व आप में ही निहीत (स्थित) होअता है, इसलिये आप इसके परम निधान हैं। अभिप्राय यह है कि शरीररूप विश्व के आत्मरूप होने के कारण आप ही इसके परम आधार हैं। जगत में सम्पूर्ण जानने वाले और जानने योग्य भी आप ही हैं। इस प्रकार सर्वात्मभाव से स्थित आप मे परम धाम-स्थान हैं अर्थात परम प्राप्य स्थान हैं।

जगति सर्वो वेदिता वेद्यं च सर्व त्वम् एव, एवं सर्वात्मतया अवस्थितः त्वम् एव परं च धाम स्थानं प्राप्य स्थानम् इत्यर्थः

जगत में सम्पूर्ण जानने वाले और जानने योग्य भी आप ही हैं। इस प्रकार सर्वात्म भाव से स्थित आप ही परम धाम-स्थान हैं अर्थात् परम प्राप्य स्थान हैं।

त्वया ततं विश्वम् अनन्तरूप त्वया आत्मत्वेन विश्वं चिदचिन्मिश्रं जगत् ततं व्याप्तम्।। 38।।

हे अनन्तरूप! इस विश्व के आत्मभाव में स्थित आप परमेश्वर से यह जडचेतनमिश्रित सम्पूर्ण जगत् व्याप्त है।। 38।।

अतस्त्वम् एव वाय्वादिशब्दवाच्य इति आह- इसलिये वायु आदि शब्दों के वाच्य भी आप ही हैं, यह कहते हैं-

वायुर्यमोऽग्निर्वरुण: शशांङ्क:
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्व:
पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥39॥

आप वायु, यम, अग्रि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजापति और प्रपितामह हैं। आपको सहस्र-सहस्र नमो नमः (नमस्कार) है और बार-बार आपको नमो नमः (नमस्कार) है।। 39।।

सर्वेषां प्रपितामहः त्वम् एव, पितामहादयः च। प्रजापतीनां पिता हिरण्यगर्भः प्रजानां पितामहः, हिरण्यगर्भस्य अपि पिता त्वं प्रजानां प्रपितामहः; पितामहादीनाम् आत्मतया तत्तच्छब्दवाच्यः त्वम् एव इत्यर्थः।। 39।।

सबके प्रपितामह और पितामह आदि भी आप ही हैं। अर्थात् समस्त प्रजा के पिता प्रजापतिगण हैं, उन प्रजापतियों के पिता और सब प्रजाओं के पितामह ब्रह्मा हैं, उनके भी पिता आप सारी प्रजाओं के प्रपितामह हैं। अर्थात् पितामह आदि के भी आत्म होने के कारण उन-उन शब्दों के वाच्य आप ही हैं।। 39।।

अत्यद्धुताकारं भगवन्तं दृष्टा हर्षोत्फुल्लनयनः अत्यन्तसाध्वसावनतः सर्वतो नमस्करोति-

अत्यन्त अद्भुत आकृति वाले भगवान् का दर्शन करके, जिसके नेत्र हर्ष से प्रफुल्लित हो गये हैं, ऐसा चकित और अत्यन्त भय से विनम्र हुआ अर्जुन भगवान् को सब ओर से नमस्कार करता है-

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः