श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय
उच्चै: श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् ।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥27॥
घोड़ों में अमृतमन्थन के समय उत्पन्न उच्चैः श्रवा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत और नरों में राजा तू मुझको जान।। 27।।
सर्वेषां अश्वानां मध्ये अमृत मथनोद्भवम् उच्चैःश्रवसं मां विद्धि। गजेन्द्राणां सर्वेषां मध्ये अमृतमथनोद्भवम् ऐरावतं मां विद्धि। ‘अमृतोद्भवम्’ इति ऐरावतस्य अपि विशेषणम्। नराणां मध्ये राजानं मां विद्धि।। 27।।
समस्त घोड़ों में अमृतमन्थन के समय उत्पन्न उच्चैः श्रवा (नामक घोड़ा) मुझको जान। सब गजेन्द्रों में अमृतमन्थन के समय प्रकट हुआ ऐरावत मुझको जान; मनुष्यों में राजा मुझको जान। इस श्लोक में आया हुआ ‘अमृतोद्भव’ शब्द ऐरावत का भी विशेषण है।। 27।।
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्प: सर्पाणामस्मि वासुकि: ॥28॥
मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ, उत्पन्न करने वाला कामदेव और सर्पों में वासुकि हूँ।। 28।।
आयुधानां मध्ये वज्रं तद् अहम्। धेनूनां हविर्दुघानां मध्ये कामधुक्, दिव्या सुरभिः। प्रजनः जननहेतुः कन्दर्पः च अहम् अस्मि सर्पाः एकशिरसः तेषां मध्ये वासुकिः अस्मि।। 28।।
आयुधों में जो वज्र है, वह मैं हूँ; हवि प्रदान करने वाली धेनुओं में दिव्य सुरभि कामधेनु मैं हूँ; उत्पत्ति का कारण काम भी मैं हूँ; उत्पत्ति का कारण काम भी मैं हूँ, एक सिरवालों का नाम सर्प है, उनमें वासुकि मैं हूँ।। 28।।
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