श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितृणामर्यमा चास्मि यम: संयमतामहम् ॥29॥
नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ, जलचरों का राजा वरूण मैं हूँ, पितरों में अर्यमा और दण्ड देने वालों में यम हूँ।। 29।।
नागा बहुशिरसः, यादांसि जल वासिनः, तेषां वरुणः अहम्, अत्र अपि न निर्धारणे षष्ठी, दण्डयतां वैवस्वतः अहम्।। 29।।
बहुत सिरवालों का नाम नाग है, उनमें शेषनाग मैं हूँ, जलचरों का नाम ‘यादस्’ है उनका राजा वरुण मैं हूँ। यहाँ भी निर्धारण-षष्ठी नहीं है। दण्ड देने वालों में यम मैं हूँ।। 29।।
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥30॥
मैं दैत्यों में प्रह्लाद हूँ, गिनती करने वालों में काल, मृगों में मृगेन्द्र (सिंह) और पक्षियों में गरुड़ मैं हूँ।। 30।।
अनर्थप्रेप्सुतया गणयतां मध्ये कालः मृत्युः अहम्।।30।।
अनर्थप्राप्ति कराने की इच्छा से जो जीवों की आयु की गणना करते हैं, उनमें मृत्यु नाम का काल मैं हूँ (और सब स्पष्ट है)।। 30।।
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