श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 224

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय

ये च यक्षरक्षः पिशाचादीनि भूतानि यजामः, इति भूतयजन संकल्पाः, ते भूतानि यान्ति।

जो ‘यक्ष, राक्षस, पिशाचादि प्राणियों की हम पूजा करेंगे’ इस प्रकार भूतपूजन विषयक संकल्प वाले हैं, वे भूतों को पाते हैं।

ये तु तैः एव यज्ञैः देवपितृभूतशरीरकं परमात्मानं भगवन्तं वासुदेवं यजामः इति मां यजन्ते ते मद्याजिनः माम् एव यान्ति।

परन्तु जो उन्हीं यज्ञादि के द्वारा ‘देव, पितर और भूत जिसके शरीर हैं उस परमात्मा वासुदेव भगवान् की हम पूजा करेंगे’ इस भाव से मेरा पूजन करते हैं वे मेरा पूजन करने वाले मुझको ही पाते हैं।

देवादिव्रता देवादीन् प्राप्य तैः सह परिमितं भोगं भुक्त्वा तेषां विनाशकाले तैः सह विनष्टा भवन्ति; मद्याजिनः तु माम् अनादिनिधनं सर्वज्ञं सत्यसंकल्प अनविधकातिशया सङ्ख्येयकल्याण गुणगणमहोदधिम् अनवधिकातिशयानन्दं प्राप्य न पुनः निवर्तन्ते इत्यर्थः।। 25।।

अभिप्राय यह है कि देवतादि के पूजा-विषयक संकल्प वाले उन देवादि को पाकर उनके सहित परिमित भोगों को भोगकर उनके विनाशकाल में उनके साथ ही नष्ट हो जाते हैं; परन्तु मेरा पूजन करने वाले आदि-अन्तरहित, सर्वज्ञ, सत्यसंकल्प, अपार निरतिशय असंख्य कल्याणगुणगणों के महान् समुद्र, अपार अतिशय आनन्दरूप मुझ परमेश्वर को पाकर वापस नहीं लौटते।। 25।।

मद्याजिनाम् अयम् अपि विशेषः अस्ति इति आह-

मेरा पूजन करने वालों की यह और भी विशेषता है, यह कहते हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
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अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
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