श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 219

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥19॥

अर्जुन! मैं तपता हूँ, मैं वर्षा को रोके रखता और बरसाता हूँ और अमृत तथा मृत्यु एवं सत् तथा असत् भी मैं ही हूँ।। 19।।

अग्न्यादित्यादिरूपेण अहम् एव तपामि, ग्रीष्मादौ अहम् एव वर्ष निगृह्णामि तथा वर्षासु अपि च अहम् एव उत्सृजामि। अमृतं च एव मृत्युः च येन जीवति लोको येन च म्रियते, तद् अभयम् अपि अहम् एव। किम् अत्र बहुना उक्तेन? सद् असत् च अपि अहम् एव। सद् यद् वर्तते, असद् यद् अतीतम् अनागतं च, सर्वावस्थावस्थितचिदचिद्वस्तुशरीरतया तत्पत्प्रकारः अहम् एव अवस्थित इत्यर्थः।

अग्नि और सूर्य आदि के रूप में मैं ही तपता हूँ। ग्रीष्म आदि ऋतुओं में मैं ही वर्षा को रोके रखता हूँ और वर्षा ऋतु में बरसाता भी मैं ही हूँ। एवं अमृत और मृत्यु-जिससे प्राणी जीते हैं और जिससे मरते हैं, वे दोनों भी मैं ही हूँ। यहाँ अधिक कहने से क्या है, सत् और असत् भी मैं ही हूँ। अभिप्राय यह है कि वर्तमान वस्तु का नाम सत् है और भूत-भविष्य वस्तु का नाम असत् है, सो सभी अवस्थाओं में स्थित जड-चेतन वस्तु मेरी ही शरीर होने के कारण उन-उन वस्तुओं के रूप में मैं ही स्थित हूँ।

एवं बहुधा पृथक्त्वेन विभक्तनामरूपावस्थितकृत्स्न जगच्छरीरतया तत्प्रकारः अहम् एव अवस्थित इति एकत्वज्ञानेन अनुसन्दधानाः च माम् उपासते ते एव महात्मानः।। 19।।

इस तरह मैं बहुत-से प्रकारों में पृथक्-पृथक् विभक्त नामरूपों में अवस्थित सम्पूर्ण जगत्रूप शरीर वाला हूँ, इसलिये उनके रूप् में मैं ही स्थित हूँ, ऐसे एकत्व ज्ञान से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्त मेरी उपासना करते हैं वे ही महात्मा हैं।। 19।।

एवं महात्मनां ज्ञानिनां भगवदनुभवैक भोगानां वृत्तम् उक्त्वा तेषाम् एव विशेषं दर्शयितुम् अज्ञानां कामकामानां वृत्तम् आह-

इस प्रकार एकमात्र भगवान का अनुभव करते रहना ही जिनका ‘भोग’ है ऐसे ज्ञानी महात्मा पुरुषों के स्वभाव एवं आचरणों का वर्णन करके, अब उन्हीं की विशेषता दिखलाने के लिये भोगों की कामना वाले अज्ञानियों के आचरणों का वर्णन करते हैं-

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः