श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 113

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौथा अध्याय

एवम् आत्मयाथात्म्यानुसन्धानगर्भ कर्म यः पश्येत् स बुद्धिमान् कृत्स्त्रशास्त्रार्थवित्, मनुष्येषु स युक्तः मोक्षार्हः स एव कृत्स्त्रकर्मकृत् कृत्स्त्रशास्त्रार्थकृत्।।18।।

इस प्रकार आत्मा के यथार्थ स्वरूप का अनुसंधान जिसके अन्तर्गत है, ऐसे कर्म को जो समझता है, वह बुद्धिमान् है-समस्त शास्त्र के अभिप्राय को जानने वाला है, वह मनुष्यों में युक्त-मोक्ष का अधिकारी है और वही सब कर्मों को करने वाला है- समस्त शास्त्राभिप्राय के अनुसार चलने वाला है।।18।।

प्रत्यक्षेण क्रियमाणस्य कर्मणो ज्ञाना कारता कथम् उपपद्यते? इत्यत्र आह-

प्रत्यक्ष क्रियमाण कर्म की ज्ञानस्वरूपता कैसे सिद्ध होती है? सो कहते हैं-

यस्य सर्वे समारम्भा: कामसंकल्पवर्जिता: ।
ज्ञानग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा: ॥19॥

जिसके समस्त कर्म कामना और संकल्प से रहित हैं, उस ज्ञानाग्नि के द्वारा दग्ध हुए कर्मों वाले पुरुष को बुद्धिमान् लोग पण्डित कहते हैं।।19।।

यस्य मुमुक्षोः सर्वे द्रव्यार्जनादि लौकिककर्मपूर्वकनित्यनैमित्तिक काम्यरूपकर्मसमारम्भाः कामवर्जिताः फलसंगरहिताः संकल्पवर्जिता च।

जिस मुमुक्षु पुरुष के समस्त आरम्भ द्रव्योपार्जनादि लौकिक कर्मोंसहित नित्य, नैमित्तिक और काम्यरूप सभी कर्म समारम्भ कानावर्जित-फलासक्ति से रहित और संकल्प से भी रहित होते हैं।

प्रकृत्या तद्गुणैः च आत्मानम् एकीकृत्य अनुसन्धानं संकल्पः। प्रकृति वियुक्तात्मस्वरूपानुसन्धानयुक्ततया तद्रहिताः। तम् एवं कर्म कुर्वाणं पण्डितं कर्मान्तर्गतात्मयाथात्म्यज्ञानाग्निना दग्धप्राचीनकर्माणम् आहुः तत्त्वज्ञाः। अतः कर्मणो ज्ञानाकारत्वम् उपपद्यते।। 19।।

प्रकृति और प्रकृति के गुणों के साथ आत्मा की एकता करके समझने का नाम ‘संकल्प’ है। पर उसके कर्म प्रकृति से पृथक् आत्मस्वरूप के अनुसन्धानपूर्वक किये जाने के कारण उस (संकल्प)- से रहित होते हैं। इस प्रकार कर्म करते हुए, कर्मान्तरर्गत आत्मा के यथार्थ स्वरूप-ज्ञानरूपी अग्रि के द्वारा प्राचीन कर्मों को भस्म कर देने वाले उस (मुमुक्षु)- को तत्त्वज्ञ पुरुष पण्डित कहते हैं। इसलिये कर्मों की ज्ञानरूपता सिद्ध होती है।।19।।

एतद् एव विवृणोति-

इसी का विस्तार करते हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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