बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 49

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

8. इस मक्खन का क्या करूँ?

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अरे, इन्होंने तो मक्खन की ओर झाँक कर
उधर को मुँह फिरा लिया।
मेरे हाथ से नहीं खाओगे?
अभी श्यामसुन्दर तनिक-सा भी मक्खन फेंक देते
तो सब-के-सब उस पर टूट पड़ते।
मैं हाँड़ी-की-हाँड़ी दे रही हूँ,
फिर भी नहीं लेते!
ऐसा मुँह घुमाते हैं जैसे मैं विष दे रही हूँ।
अच्छा, अच्छा, भागो मत,
न खाओ मक्खन।
मैं किसी दूसरे को दू दूँगी।
वह आदमी मथुरा की ओर जाता दिखायी पड़ता है,
ठीक तो है,
उसी को दे दूँ,
वह जाकर कन्हैया को दे देगा।
कहला दूँगी कि
लो, अपना मक्खन तुम्हीं खाओ।
तुम्हारे बिना यहाँ कोई मक्खन नहीं खाता।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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