चितचोर!
तुम गये तो साथ-ही-साथ
अपना प्रेम भी क्यों नहीं लेते गये?
उसे हमें जलाने के लिये क्यों छोड़ गये?
ले गये हृदय और दे गये पीड़ा,
बड़े चतुर निकले।
मनमोहन!
यदि हमारा मन हमारे पास होता
तो हम उसे किसी और काम में लाग देतीं,
किन्तु हा निष्ठुर!
तुमने हमें इस योग्य भी नहीं रक्खा।
जाने के कुछ दिन पहले तुमने रार कर ली होती
झगड़ा कर लिया होता,
एक-दूसरे से रूठ गये होते,
तो अपना-अपना हृदय लौटा लेते।
किन्तु यह सब तुम किसलिये करते,
तुमने हृदय दिया होता तब न?
छली कहीं के!