बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 6

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

2. क्या मैं बावरी हूँ?

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चितचोर!
तुम गये तो साथ-ही-साथ
अपना प्रेम भी क्यों नहीं लेते गये?
उसे हमें जलाने के लिये क्यों छोड़ गये?
ले गये हृदय और दे गये पीड़ा,
बड़े चतुर निकले।
मनमोहन!
यदि हमारा मन हमारे पास होता
तो हम उसे किसी और काम में लाग देतीं,
किन्तु हा निष्ठुर!
तुमने हमें इस योग्य भी नहीं रक्खा।
जाने के कुछ दिन पहले तुमने रार कर ली होती
झगड़ा कर लिया होता,
एक-दूसरे से रूठ गये होते,
तो अपना-अपना हृदय लौटा लेते।
किन्तु यह सब तुम किसलिये करते,
तुमने हृदय दिया होता तब न?
छली कहीं के!

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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