अरी कोयल!
क्यों मेरे पीछे पड़ी है,
तुझे दूसरा स्थान नहीं मिलता?
सच है, भाग्यहीन को कहीं शान्ति नहीं।
सभी शत्रु बन जाते हैं।
तेरे हाथ जोड़ती हूँ, बहन!
कुछ तो दया कर।
मनमोहन हृदय को घायल करके चले गये,
तू निरन्तर उस पर नमक छिड़क रही है।
कूक-कूककर हृदय छलनी कर डाला तूने।
फिर नहीं मानती।
हा राम, क्या काले मात्र निर्दयी होते हैं?
ले तू यही मर मैं चली जाती हूँ।
व्यर्थ ही मैं कुञ्जों की ओर आ गयी।
कौन कहता है कि मैं कन्हैया को याद करती हूँ?
मैं क्यों याद करने लगी,
मैं तो लकड़ी बीनने आयी थी,
लकड़ियाँ नहीं दिखायी दीं तो बैठ गयी।