बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 18

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

4. और कूक

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अरी कोयल!
क्यों मेरे पीछे पड़ी है,
तुझे दूसरा स्थान नहीं मिलता?
सच है, भाग्यहीन को कहीं शान्ति नहीं।
सभी शत्रु बन जाते हैं।
तेरे हाथ जोड़ती हूँ, बहन!
कुछ तो दया कर।
मनमोहन हृदय को घायल करके चले गये,
तू निरन्तर उस पर नमक छिड़क रही है।
कूक-कूककर हृदय छलनी कर डाला तूने।
फिर नहीं मानती।
हा राम, क्या काले मात्र निर्दयी होते हैं?
ले तू यही मर मैं चली जाती हूँ।
व्यर्थ ही मैं कुञ्जों की ओर आ गयी।
कौन कहता है कि मैं कन्हैया को याद करती हूँ?
मैं क्यों याद करने लगी,
मैं तो लकड़ी बीनने आयी थी,
लकड़ियाँ नहीं दिखायी दीं तो बैठ गयी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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