बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 52

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

9. हाय, यह तो स्वप्न था

Prev.png

प्यारे मोहन!
आखिर तुम आये न?
मैं जानती थी कि तुम अवश्य आओगे।
दूसरों की राम जानें, मुझे तो पूरा विश्वास था।
यह हो ही कैसे सकता है कि हम यहाँ तड़पें,
और तुम वहाँ शांति से बैठे रहो!
किंतु बड़े कठोर हो माधव!
जल्दी नहीं आये।
इतना तड़पा लिया तब दर्शन दिये।
सारा ब्रज विरहाग्नि में झुलस गया।
ये सब सखियाँ निर्जीव-सी चलती-फिरती थीं।
तुम भी कुछ कहो सखियों!
सब मैं ही कहूँ क्या?
देखो न, ये सब ऐसी चुप हैं
मानो इन्हें कोई दुःख ही न था।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः