प्यारे मोहन!
आखिर तुम आये न?
मैं जानती थी कि तुम अवश्य आओगे।
दूसरों की राम जानें, मुझे तो पूरा विश्वास था।
यह हो ही कैसे सकता है कि हम यहाँ तड़पें,
और तुम वहाँ शांति से बैठे रहो!
किंतु बड़े कठोर हो माधव!
जल्दी नहीं आये।
इतना तड़पा लिया तब दर्शन दिये।
सारा ब्रज विरहाग्नि में झुलस गया।
ये सब सखियाँ निर्जीव-सी चलती-फिरती थीं।
तुम भी कुछ कहो सखियों!
सब मैं ही कहूँ क्या?
देखो न, ये सब ऐसी चुप हैं
मानो इन्हें कोई दुःख ही न था।