प्यारे दामोदर!
मेरी इस दशा का तो तुम्हें कुछ भी पता न होगा?
कैसी निर्दयता से सासजी ने रस्सियों से जकड़कर बाँधा है।
कहती हैं-
तेरा दिमाग ठिकाने नहीं है।
इधर-उधर भागती हूँ,
बे-सिर-पैर की बात बकती हूँ,
हँसती हूँ तो हँसती ही रहती हूँ,
रोती हूँ तो बंद ही नहीं होती।
कहती थीं-
मैंने कई छोटे-छोटे सुन्दर गोपकुमारों को
इतनी जोर से कसकर पकड़ लिया कि वे रो पड़े।
मुझे तो कुछ भी याद नहीं आता।
तुम्हीं बताओ मोहन!