बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 98

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

16. यह है प्रेम-परिणाम

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प्यारे दामोदर!
मेरी इस दशा का तो तुम्हें कुछ भी पता न होगा?
कैसी निर्दयता से सासजी ने रस्सियों से जकड़कर बाँधा है।
कहती हैं-
तेरा दिमाग ठिकाने नहीं है।
इधर-उधर भागती हूँ,
बे-सिर-पैर की बात बकती हूँ,
हँसती हूँ तो हँसती ही रहती हूँ,
रोती हूँ तो बंद ही नहीं होती।
कहती थीं-
मैंने कई छोटे-छोटे सुन्दर गोपकुमारों को
इतनी जोर से कसकर पकड़ लिया कि वे रो पड़े।
मुझे तो कुछ भी याद नहीं आता।
तुम्हीं बताओ मोहन!

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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