बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 1

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

1. कल की बात

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घात तो वही है,
मैं भी नित्य की भाँति कलश लेकर आ गयी।
गोपियाँ भी आयी हैं।
किन्तु सब मौन हैं,
कोई किसी से बोलती नही।
मालूम होता है किसी के मुख में जिह्वा नहीं है।
सबके नेत्र सजल हैं,
किसी-किसी के आँसू तो उसका भरम खोले देते हैं।
घड़ा उठता नहीं,
कलतक तो शक्ति रहते हुए भी
कन्हैया से ही घड़ा उठवाती थीं।
आज सचमुच सभी शक्तिहीन दिखायी पड़ती हैं।
विवश होकर एक-दूसरे की ओर देखती हैं,
दृष्टि से दृष्टि मिलते ही हृदय उमड़ पड़ता है,
सबको कल का स्मरण हो आता है।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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