घात तो वही है,
मैं भी नित्य की भाँति कलश लेकर आ गयी।
गोपियाँ भी आयी हैं।
किन्तु सब मौन हैं,
कोई किसी से बोलती नही।
मालूम होता है किसी के मुख में जिह्वा नहीं है।
सबके नेत्र सजल हैं,
किसी-किसी के आँसू तो उसका भरम खोले देते हैं।
घड़ा उठता नहीं,
कलतक तो शक्ति रहते हुए भी
कन्हैया से ही घड़ा उठवाती थीं।
आज सचमुच सभी शक्तिहीन दिखायी पड़ती हैं।
विवश होकर एक-दूसरे की ओर देखती हैं,
दृष्टि से दृष्टि मिलते ही हृदय उमड़ पड़ता है,
सबको कल का स्मरण हो आता है।