प्यारे माखनचोर!
तुम यहाँ होते तो भला, इतना मक्खन इकट्ठा होने पाता?
सास जी सहेज गयी थीं कि
मक्खन इकट्ठा हो जाय तो घी बना लेना।
किंतु क्या कहूँ,
मक्खन तो किसी तरह निकाल लेती हूँ,
अब इसका घी कौन बनावे।
घी तो अब बनने लगा है।
पहले तो मक्खन बनते ही साफ हो जाता था,
फिर घी कहाँ से बनता।
मक्खन बनाने तक का अभ्यास तो काफी है,
और उतना काम अब भी कर लेती हूँ,
किंतु यह घी बनाने वाला नया काम करते समय
न जाने कहाँ का आलस्य छा जाता है।
रोज सोचती हूँ कि चलूँ, घी बना लूँ,
नहीं तो सास जी आकर बिगड़ेंगी,
किंतु धीरे-धीरे इतना मक्खन इकट्ठा हो गया और
घी न बन सका।