बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 43

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

7. रे भौंरे, मत गूँज

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अरे, मोहन तो नहीं दीखते।
किसी भी डालपर नहीं हैं!
हाय, ऐसे भाग्य कहाँ!
यह तो मैं पहले ही जानती थी।
प्राणप्यारे!
देखो, मैं कैसी सजकर आयी हूँ।
हाय, किसे दिखाऊँ।
पापी भौंरे!
अब तो मेरी जान न ले।
जा, किसी भोली कली को छल।
हा मोहन!
देखो, मैं कितनी असहाय हूँ,
यह छोटा-सा भौंरा भी मेरी बात नहीं सुनता।
दया कर, भाई!
अधिक न सता।
आह, अब तो बोलने की भी शक्ति नहीं है।
अच्छा, कोई जबरदस्ती नहीं है,
प्रार्थना करती हूँ,
रे भौंते मत गूँज।
(पेड़ के तने की आड़ लगाकर बैठ जाती है और अचेत हो जाती है।)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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