बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 23

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

5. कैसे थे वे दिन?

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प्राणप्रिय श्याम!
लोग कहते हैं, तुमको गये कुछ ही दिन तो हुए।
किन्तु मुझे ऐसा लगता है मानो कई युग बीत गये।
हमलोग कभी कुञ्जों में फिरते थे,
कभी तुम मेरी गागर उठाते थे,
कभी मेरी वेणी पकड़कर नचाते थे,
कभी मैं तुम्हारी मुरली छीन लेती थी,
यह सब तो मुझे स्मरण ही नहीं आता।
कभी ऐसा हुआ था क्या?
मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि
मैं सदा से तुम्हारे दर्शन को तड़प रहीं हूँ।
बहुत प्रयत्न करनेपर भास होता है कि
पूर्व के किसी जन्म के बचपन में तुम्हारा-मेरा साथ था।
उसी की क्षीण रेखा कभी-कभी मस्तिष्क पर खिंच जाती है,
और फिर मिट जाती है।
इतना तो सत्य है कि तुम कभी मिले थे।
तभी तो फिर देखने की लालसा बनी है।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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