किन्तु यह समझ में नहीं आता कि
अभी कुछ ही दिन पहले हमलोग
साथ-साथ कुन्जों में विहार किया करते थे।
जिस किसी से कहती हूँ कि
किसी पूर्वजन्म के बचपन के साथी कन्हैया से मिलना चाहती हूँ,
वही मुझे बावरी-पगली आदि बताता है।
कहता है कि वर्षों जिसके साथ नाचती-खेलती रही,
उसको किसी पूर्वजन्म का साथी बताती है।
क्या करूँ भाई, अपने होश को,
मुझे तो यह सब याद नहीं आता।
बावरी कहो, दीवानी कहो,
जो जी में आये, कहो।
प्यारे माधव!
तुम तो जानते ही होगे,