बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 119

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

19. मैं तो चली पिया की डागरिया

Prev.png

प्राणवल्लभ!
बस, अब हो चुका,
मैं प्रतीक्षा की चरम सीमा पर आ गयी,
स्वभावतः अब लुढ़कना ही है।
आखिर तुम नहीं ही आये,
तो सब कुछ भूलकर मुझे ही आना पड़ेगा।
अभी तो छूटी हुई हूँ,
पता नहीं सास जी फिर कब बाँध दे?
मन कहता है- चल,
नेत्र कहते हैं- चल,
कान कहते हैं- चल,
हाथ पैर कहते हैं- चल
तब कैसे रुकूँ, मोहन?
कहीं तुम मेरी विवशता को समझ पाते?
मेरे आने पर तुम क्रुद्ध तो न होगे?
क्रुद्ध ही होगे तो मेरा क्या वश है,
अब बिना तुम्हें देखे चैन नहीं!

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः