बैरिन कोयल!
जब व्रजनंदन थे, तब तूने
पेट भरके क्यों नहीं कूक लिया?
क्या कहा?
तब भी गाती थी, किन्तु हमलोग उपेक्षा कर देती थीं?
तेरी कूक व्यर्थ जाती थी?
अच्छा, तब तू उसी का बदला चुका रही है।
अब बस कर बहन!
सहने की शक्ति नहीं है।
कू-कू
प्यारे कृष्ण! बताओं कहाँ जाऊँ?
कू-कू
आह, प्राण भी नहीं निकलते।
कू-कू
नहीं मानती हठीली, तो और कूक
कू-कू
आह, बनवारी!.............और कूक
कू-कू
हा गोविन्द!!....और कूक
कू-कू
आह, प्या........रे.........न........ट........व......र!!!
(अचेत हो जाती है।)