बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 5

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

1. कल की बात

Prev.png

अच्छा, कलश!
तू तनिक जल के भीतर ही बैठ,
मैं उस स्थान पर बैठती हूँ,
जहाँ कल बैठकर कन्हैया ने वंशी बजायी थी।
आह, ये बालूकण भी भीग रहे हैं।
क्या तुम भी रो रहे हो?
तुम्हें भी उसकी याद आती है?
मैं प्रकृतिस्थ हूँ,
मुझे कुछ नहीं हुआ।
तो तुम भी कल की बात सुनोगे?
लो तुम्हें भी सुनाती हूँ।
आह!
क्या ही निराली थी कलकी बात।
(नेत्र बंद करके शिथिल होकर बैठ जाती है)

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः