बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 50

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

8. इस मक्खन का क्या करूँ?

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पर वह आदमी तो बड़ी दूर है।
दौड़कर जाऊँ?
थक जाऊँगी।
तो क्या हुआ।
घर जाकर दिनभर पड़ी रहूँगी,
थकावट मिट जायगी।
आह, मैं कितना तेज दौड़ती हूँ,
फिर भी वह निकट नहीं होता।
वह निर्दयी भी तेज चलता है।
पता नहीं, उसे इतनी जल्दी क्यों है?
ठहर जा, भैया!
मैं बहुत थक गयी हूँ।
साँस फूलने लगी,
केश बिखर गये,
माथे पर पसीना आ गया।
इस हाँडी को सँभालना भी कठिन हो रहा है।
न रुक निर्दयी!
मैं ही पूरी शक्ति लगाकर दौडूँगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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