पर वह आदमी तो बड़ी दूर है।
दौड़कर जाऊँ?
थक जाऊँगी।
तो क्या हुआ।
घर जाकर दिनभर पड़ी रहूँगी,
थकावट मिट जायगी।
आह, मैं कितना तेज दौड़ती हूँ,
फिर भी वह निकट नहीं होता।
वह निर्दयी भी तेज चलता है।
पता नहीं, उसे इतनी जल्दी क्यों है?
ठहर जा, भैया!
मैं बहुत थक गयी हूँ।
साँस फूलने लगी,
केश बिखर गये,
माथे पर पसीना आ गया।
इस हाँडी को सँभालना भी कठिन हो रहा है।
न रुक निर्दयी!
मैं ही पूरी शक्ति लगाकर दौडूँगी।