हाय, हाय, यह मैंने क्या किया।
न रोओ, मेरे लाड़लों!
मैं जाती हूँ।
धन्य है इन ग्वाल-बालों के प्रेम को,
कन्हैया के जाने पर मक्खन खाना छोड़ दिया।
वहाँ कुछ बंदर बैठे हैं,
उन्हीं को क्यों न खिला दूँ,
नटनागर भी तो उनको खूब खिलाते थे।
कहीं मुझको देखकर भग न जायँ।
हाँड़ी का मुँह उनकी ओर कर दूँ,
जिससे वे समझ जायँ कि मक्खन है।
लो, मेरे प्यारे के मित्रों!
तुम्हीं यह मक्खन खा लो।