बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 48

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

8. इस मक्खन का क्या करूँ?

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हाय, हाय, यह मैंने क्या किया।
न रोओ, मेरे लाड़लों!
मैं जाती हूँ।
धन्य है इन ग्वाल-बालों के प्रेम को,
कन्हैया के जाने पर मक्खन खाना छोड़ दिया।
वहाँ कुछ बंदर बैठे हैं,
उन्हीं को क्यों न खिला दूँ,
नटनागर भी तो उनको खूब खिलाते थे।
कहीं मुझको देखकर भग न जायँ।
हाँड़ी का मुँह उनकी ओर कर दूँ,
जिससे वे समझ जायँ कि मक्खन है।
लो, मेरे प्यारे के मित्रों!
तुम्हीं यह मक्खन खा लो।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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