अभी कुशल है,
पिता जी से कह दे कि ‘मैं वहाँ ब्याहकर न जाऊँगी।
तू न कह सके तो बोल, हम कह दें।’
मेरी प्यारी सखियों ने तो इस प्रकार सावधान किया था,
किन्तु मैंने ही उनकी सम्मति की उपेक्षा की।
मैंने कहा था,
‘वाह रे, कोई जबरदस्ती है?
मेरा जिससे कोई सम्बन्ध नहीं,
वह मुझे मार्ग में क्यों छेड़ेगा?
और यदि छेड़ेगा भी तो मैं डाँट दूँगी,
उसका मुझे डर लगता है क्या?
मैं एक छोकरे के भय से
अपने पिता से ऐसी धृष्टता क्यों करूँ?
तुम उनसे कुछ न कहना,
मैं वहीं जाना चाहती हूँ।
देखूँगी वह मुझे कैसे आकर्षित करता है।’
आह! मेरा यही अभिमान
आज मेरी वेदना का कारण बना है।