कुछ सखियों ने कहा था,
‘तेरे भाग्य फूट गये, सखी!
अब तू किसी काम की नहीं रहेगी,
कुञ्जबिहारी को देखते ही सुध-बुध खो बैठेगी।
घर-द्वार, काम-काज सब भूल जायगी।
कन्हैया की वंशी की एक टेर सुनते ही
तू बावरी हो जायगी।’
मैंने कहा था,
‘तुम पगली हो क्या?
मैं उसे देखूँगी ही नहीं,
उसकी वंशी सुनूँगी ही नहीं।’
तब सखियों ने हँसकर बताया था,
‘इस भ्रम में मत रहना कि तू देखेगी ही नहीं,
उसकी वंशी सुनेगी ही नहीं।
वह बरबस तुझे अपनी ओर आकर्षित करेगा,
बरबस अपनी वंशी सुनायेगा।
मार्ग में आते-जाते छेड़ेगा।