बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 14

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

3. मेरी ही भूल थी

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कुछ सखियों ने कहा था,
‘तेरे भाग्य फूट गये, सखी!
अब तू किसी काम की नहीं रहेगी,
कुञ्जबिहारी को देखते ही सुध-बुध खो बैठेगी।
घर-द्वार, काम-काज सब भूल जायगी।
कन्हैया की वंशी की एक टेर सुनते ही
तू बावरी हो जायगी।’
मैंने कहा था,
‘तुम पगली हो क्या?
मैं उसे देखूँगी ही नहीं,
उसकी वंशी सुनूँगी ही नहीं।’
तब सखियों ने हँसकर बताया था,
‘इस भ्रम में मत रहना कि तू देखेगी ही नहीं,
उसकी वंशी सुनेगी ही नहीं।
वह बरबस तुझे अपनी ओर आकर्षित करेगा,
बरबस अपनी वंशी सुनायेगा।
मार्ग में आते-जाते छेड़ेगा।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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