भला यह इनकी अज्ञानता ही है न?
अरे, जब वर्षों तक देखने से जी न भरा,
तो एक बार देखने से क्या हो जायेगा?
किंतु नहीं,
बेचारे कहते हैं कि
तब हमें स्वप्न में भी आशा न थी कि
मनमोहन हमसे कभी ओझल भी होंगे!
इसी से इन्होंने ध्यान नहीं दिया,
रूप-मदिरा पीकर मत्त बने रहे।
अब देखेंगे तो यह समझकर कि यह अंतिम दर्शन है।
अच्छा, यही सही।
दे दो प्यारे, इन्हें फिर एक बार दर्शन।
ये भी समझ लें कि अन्तिम दर्शन का क्या आनन्द होता है!
पगले हैं, समझते नहीं,
अंतिम दर्शन में भी कभी आनन्द हुआ है?