बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 117

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

18. बस, एक झलक

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भला यह इनकी अज्ञानता ही है न?
अरे, जब वर्षों तक देखने से जी न भरा,
तो एक बार देखने से क्या हो जायेगा?
किंतु नहीं,
बेचारे कहते हैं कि
तब हमें स्वप्न में भी आशा न थी कि
मनमोहन हमसे कभी ओझल भी होंगे!
इसी से इन्होंने ध्यान नहीं दिया,
रूप-मदिरा पीकर मत्त बने रहे।
अब देखेंगे तो यह समझकर कि यह अंतिम दर्शन है।
अच्छा, यही सही।
दे दो प्यारे, इन्हें फिर एक बार दर्शन।
ये भी समझ लें कि अन्तिम दर्शन का क्या आनन्द होता है!
पगले हैं, समझते नहीं,
अंतिम दर्शन में भी कभी आनन्द हुआ है?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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