बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 118

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

18. बस, एक झलक

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वह कसक होगी कि उसी क्षण ये बेकाम हो जायेंगे!
चलो, अच्छा ही होगा,
इनसे मेरा पिण्ड तो छूटेगा!
बहुत तंग करते हैं मुझे,
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
तब इच्छा रहते भी
न तुम और किसी अन्य को ही देख सकेंगे।
पीछे कुछ भी हो,
अभी तो इनकी यही रट लगी है।
बस, एक झलक।
आह प्याणप्यारे!
क्या मैं आशा करूँ कि तुम इन पर दया करोगे?
अधिक नहीं,
बस एक झलक।
(चेतनाहीन होकर गिर पड़ती है।)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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