मेरी कठोर रस्सियों को देखो, तो कहो!
तुम थोड़ी देर के लिये ही बँधे थे,
मुझको बँधे दो दिन हो गये।
तुम्हारा बन्धन सुनकर सारी गोपियाँ दौड़ पड़ी थीं,
जसोदा मैया से तुम्हें छोड़ देने की प्रार्थना की थी उन्होंने,
तुम्हारे प्रति सबने सहानुभूति प्रकट की थी।
मुझे पूछने वाला कौन है?
कोई आता भी है तो सासजी से कहता है कि ठीक किया।
प्राणप्यारे!
तुम होते तो क्या मैं इस तरह बँधी रहती?
समाचार पाते ही ग्वाल-बालों को लिये हुए दौड़ पड़ते
और मेरा बन्धन काट देते।
पर क्या कहूँ!