बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 100

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

16. यह है प्रेम-परिणाम

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मेरी कठोर रस्सियों को देखो, तो कहो!
तुम थोड़ी देर के लिये ही बँधे थे,
मुझको बँधे दो दिन हो गये।
तुम्हारा बन्धन सुनकर सारी गोपियाँ दौड़ पड़ी थीं,
जसोदा मैया से तुम्हें छोड़ देने की प्रार्थना की थी उन्होंने,
तुम्हारे प्रति सबने सहानुभूति प्रकट की थी।
मुझे पूछने वाला कौन है?
कोई आता भी है तो सासजी से कहता है कि ठीक किया।
प्राणप्यारे!
तुम होते तो क्या मैं इस तरह बँधी रहती?
समाचार पाते ही ग्वाल-बालों को लिये हुए दौड़ पड़ते
और मेरा बन्धन काट देते।
पर क्या कहूँ!

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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