श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-13
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग
कुछ लोग कहते हैं कि सम्पूर्ण स्थल देह-क्षेत्र जीव का ही खेत है और प्राण उसमें खेती करने वाला खेतिहर है। इस प्राण के घर में अपान, व्यान, समान और उदान- ये चार भाई काम करने वाले हैं तथा मन उन सब पर हल चलाने वाला और बीज बोने वाला है। इस मन के पास इन्द्रियरूपी बैल हैं जो खेत जोतने के काम आते हैं। यह न तो दिन को दिन और न रात को रात समझता है और हमेशा विषय रूपी खेत में खूब मेहनत करता रहता है। वह इस प्रकार की जोताई करके जो मिट्टी ऊपर-नीचे करता है, उसके कारण उसमें से कर्तव्य-कर्म के आचरण का तत्त्व निकल जाता है और तब वह खेतिहर इस तत्त्व का नाश करके अन्याय रूपी बीज बोता है तथा उसमें कुकर्मरूपी खाद डालता है। फलतः पापों की फसल पैदा होती है, जिससे जीव को कोटि-जन्मपर्यन्त दुःख झेलना पड़ता है। पर ऐसा न करके यदि कर्तव्य-कर्मों के तत्त्व को स्थिर रहने दिया जाय और सत्कर्मों के बीज बोये जायँ, तो वही जीव सैकड़ों जन्मों तक सुख प्राप्त करता है। इस पर कुछ अन्य लोग कहते हैं कि ऐसी बात नहीं है। यह क्षेत्र केवल जीव का ही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसके विषय में हमें सारी बातें जाननी चाहिये। यह जीव तो सिर्फ एक प्रवासी है। यह तो चक्कर काटता हुआ आता है और मार्ग में कुछ काल के लिये इस क्षेत्र में भी अपना डेरा डाल लेता है। इस क्षेत्र का अधिकारी प्राण है और वह नित्य इसका पहरा देता रहता है। सांख्य शास्त्र में जिसे अनादि प्रकृति कहते हैं, उसी को इस क्षेत्र की वृत्ति प्राप्त है; सारे प्रपंच उसी के हैं। इसलिये इस क्षेत्र की जोताई इत्यादि कार्य उसी के कर्मचारी करते हैं। जो मुख्य तीन गुण हैं वे इसी प्रकृति के पेट से उत्पन्न हुए हैं, जो इस संसार में खेती का काम करते हैं। खेत की जोताई रजोगुण करता है, फसल की रखवाली सत्त्वगुण करता है और उचित समय पर फसल काटकर रखना तमोगुण का काम है। |
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