श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-10
विभूति योग
ठीक इसी प्रकार श्रीगुरुदेव की महिमा का पूरा-पूरा आकलन करने के लिये कहाँ और कौन-सा साधन मिल सकता है? इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही मैंने उन गुरुदेव को चुपचाप नमन किया है। यदि कोई अपने प्रज्ञाबल के अभिमान में आकर यह कहे कि मैं गुरुदेव की सामर्थ्य का सम्यक् वर्णन करता हूँ, तो उसका यह काम आबदार मोती पर अभ्रक की कलई करने के सदृश ही उपहास का विषय होगा। अथवा गुरुदेव की वह जो कुछ स्तुति करेगा, वह स्तुति विशुद्ध स्वर्ण पर चाँदी का मुलम्मा करने के सदृश ही होगी। इसलिये कुछ भी न कहकर चुपचाप गुरुदेव के चरणों पर माथा टेकना ही सबसे अच्छा है। फिर मैंने श्रीगुरुदेव से कहा-“हे स्वामी! आपने प्रेमपूर्वक मेरी ओर दृष्टिपात किया है, अत: इस श्रीकृष्णार्जुन संवादरूपी संगम में मैं भी ठीक वैसा ही हो गया हूँ, जैसा गंगा नदी और यमुना के संगम में प्रयाग का वटवृक्ष है। जिस प्रकार प्राचीनकाल में उपमन्यु ने भगवान् शंकर से दूध की याचना किया था, तब शंकर ने स्वयं क्षीरसागर ही उसके समक्ष दूध के कटोरे की भाँति रख दिया था अथवा रुष्ट ध्रुव को मनाने के लिये वैकुण्ठ के अधिपति भगवान् विष्णु ने उसे ध्रुव-पदरूपी मिष्ठान दी थी, उसी प्रकार आपने प्रसन्न होकर कृपापूर्वक उस भगवद्गीता की टीका करने में मुझे समर्थ किया है, जो ब्रह्मविद्या में सर्वश्रेष्ठ है, जो सब शास्त्रों की विश्रान्ति का स्थान है, जिस वाणीरूपी वन में दर-दर की ठोकर खाने पर भी सार्थ अक्षर के फल का कहीं नाम भी सुनायी नहीं पड़ता, उस मेरी रूखी वाणी को आपने ही आज विवेक की कल्पलता बना दिया है। मेरी जो देह-बुद्धि थी, उसे आपने अब आनन्दरूपी भण्डार की कोठरी बना दिया है। मेरा मन गीतार्थरूपी क्षीरसमुद्र में महाविष्णु बन गया है। श्रीगुरुदेव के समस्त कृत्य ऐसे ही अलौकिक हैं, फिर भला उसकी अपार कृतियों का विवेचन मुझसे किस प्रकार हो सकता है? तो भी मैंने यहाँ उनकी कुछ कृतियों का विवेचन करने का साहस किया है और इसके लिये श्रीगुरुदेव मुझे क्षमा करें। आपके कृपा-प्रसाद से मैंने श्रीभगवद्गीता के पूर्व खण्ड की टीका बड़े उत्साह से की है। प्रथम अध्याय में अर्जुन के उस विषाद का वर्णन है जो उसे अपने बन्धु-बान्धवों के विनाश की परिकल्पना से हुआ था। द्वितीय अध्याय में निष्काम कर्मयोग का विवेचन किया गया है और साथ-ही-साथ ज्ञानयोग और बुद्धियोग में जो भेद है, उसका भी स्पष्टीकरण किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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