ज्ञानेश्वरी पृ. 292

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-9
राज विद्याराज गुह्ययोग

ऐसी स्थिति में इस मृत्युलोक में वास्तविक सुख की बात भला किसके कर्णेन्द्रियों को सुनायी पड़ सकती है? अंगारों की शय्या पर भला सुखपूर्वक कौन सो सकता है? जिस लोक का चन्द्रमा भी क्षयरोग से पीड़ित हो, जहाँ सूर्य भी केवल अस्त होने के लिये ही उदित होता हो, जहाँ दुःख ही सुख का वेष धारण कर सारे जगत् को छलता हो, जहाँ मंगल के उगते हुए अंकुरों में ही तत्क्षण अमंगल के कीड़े लग जाते हों, जहाँ माता के उदर के गुप्त गर्भाशय तक में मृत्यु पहुँचकर अपना काम कर डालती हो, जहाँ लोगों को निरन्तर मिथ्या और असत्य बातों की चिन्ता लगी रहती हो और उसी मिथ्या बात अर्थात् जीवन को यमदूत बलपूर्वक पकड़कर ले जाते हों और इस बात का पता भी न लगता हो कि वे उसे कहाँ ले जाते हैं, जहाँ चतुर्दिक् भली-भाँति खोजने पर भी कहीं से निकलने का रास्ता ही न दृष्टिगोचर होता हो, जहाँ सिर्फ पुराणों अर्थात् मृतकों की ही बातें होती हों, जहाँ ब्रह्मा की तरह आयुष्य रखने वाला व्यक्ति वस्तुमात्र की अनित्यता का चिरकाल तक वर्णन करने पर भी उसका पूरा-पूरा वर्णन न कर सकता हो; जिस लोक की ऐसी अनित्य स्थिति हो, उस लोक में जन्म लेकर जीव यदि चिन्ता मुक्त रहे जो यह बात कितनी आश्चर्यजनक और हास्यास्पद है!

जो लोग लौकिक अथवा पारलौकिक लाभ के लिये गाँठ की एक कौड़ी भी नहीं निकालते, वही लोग पूर्णरूप से हानि पहुँचाने वाली वस्तुओं के लिये करोड़ों रुपये खर्च करने में भी नहीं हिचकते। जो व्यक्ति नाना प्रकार के विषय-विलास में उलझा रहता है, उसी के विषय में लोग कहते हैं कि यह आजकल बहुत सुख से रहता है और जो व्यक्ति लोभ के बोझ से दबा रहता है, उसी को लोग सज्ञान (बुद्धिमान्) समझते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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