श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-9
राज विद्याराज गुह्ययोग
ऐसी स्थिति में इस मृत्युलोक में वास्तविक सुख की बात भला किसके कर्णेन्द्रियों को सुनायी पड़ सकती है? अंगारों की शय्या पर भला सुखपूर्वक कौन सो सकता है? जिस लोक का चन्द्रमा भी क्षयरोग से पीड़ित हो, जहाँ सूर्य भी केवल अस्त होने के लिये ही उदित होता हो, जहाँ दुःख ही सुख का वेष धारण कर सारे जगत् को छलता हो, जहाँ मंगल के उगते हुए अंकुरों में ही तत्क्षण अमंगल के कीड़े लग जाते हों, जहाँ माता के उदर के गुप्त गर्भाशय तक में मृत्यु पहुँचकर अपना काम कर डालती हो, जहाँ लोगों को निरन्तर मिथ्या और असत्य बातों की चिन्ता लगी रहती हो और उसी मिथ्या बात अर्थात् जीवन को यमदूत बलपूर्वक पकड़कर ले जाते हों और इस बात का पता भी न लगता हो कि वे उसे कहाँ ले जाते हैं, जहाँ चतुर्दिक् भली-भाँति खोजने पर भी कहीं से निकलने का रास्ता ही न दृष्टिगोचर होता हो, जहाँ सिर्फ पुराणों अर्थात् मृतकों की ही बातें होती हों, जहाँ ब्रह्मा की तरह आयुष्य रखने वाला व्यक्ति वस्तुमात्र की अनित्यता का चिरकाल तक वर्णन करने पर भी उसका पूरा-पूरा वर्णन न कर सकता हो; जिस लोक की ऐसी अनित्य स्थिति हो, उस लोक में जन्म लेकर जीव यदि चिन्ता मुक्त रहे जो यह बात कितनी आश्चर्यजनक और हास्यास्पद है! जो लोग लौकिक अथवा पारलौकिक लाभ के लिये गाँठ की एक कौड़ी भी नहीं निकालते, वही लोग पूर्णरूप से हानि पहुँचाने वाली वस्तुओं के लिये करोड़ों रुपये खर्च करने में भी नहीं हिचकते। जो व्यक्ति नाना प्रकार के विषय-विलास में उलझा रहता है, उसी के विषय में लोग कहते हैं कि यह आजकल बहुत सुख से रहता है और जो व्यक्ति लोभ के बोझ से दबा रहता है, उसी को लोग सज्ञान (बुद्धिमान्) समझते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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