गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द भाग-2
खंड-2 : परम रहस्य 22.परम रहस्य
यह रहस्यों का रहस्य ईश्वर का यह सर्वोच्च स्पष्टतम संदेश इस प्रकार है, मुझमें मन लगा, मेरे प्रेमी और मेरा भक्त बन,मेरा भजन कर मुझे नमसकार कर तू मुझे निश्चय ही प्राप्त करेंगा तेरे प्रति मेरी यह प्रतिज्ञा और प्रतिश्रुति है, क्योकिं तू मेरा प्रिय है। सभी धर्मों को तजकर केवल मेरी ही शरण ले। मैं तुझे समस्त पाप और बुराई से मुक्त करूंगा, शोक मत कर।[1] गीता सर्वत्र जिन चीजों देती आ रही है वे ये हैं-योग की एक महान और सुनिर्मित साधन-प्रणाली, एक विशाल और विशद दार्शनिक मत, स्वभाव और स्वधर्म जीवन का सात्त्विक विधान जो मनुष्य को एक उन्नायक आत्म-अतिक्रमण के द्वारा अपने घेरे से बाहर निकालकर एक अत्यंत सुविशाल यहाँ तक कि इस उच्चतम गुण की सीमा के भी परे उन्नीत, अजरामर अस्तित्व के मुक्त आध्यात्मिक धर्म की ओर ले जाता है, पूर्णता प्राप्त करने के अनेक नियम साधन और अनिवार्य विधि-विधान, और इन सब पर जोर दे चुकने के बाद अब गीता एका एक अपनी रचना को तोड़कर उससे बाहर निकलती प्रतीत होती है और मानवात्मा से कहती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 18.66
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