गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द भाग-2
खंड-2 : परम रहस्य 23.गीता का सारमर्म
गीता एक ऐसी पुस्तक है जो असाधारणतया दीर्घ काल से जीवित चली आ रही है और यह आज भी प्रायः उतनी ही ताजी है और अपने वास्तविक सारतत्त्व में अभी भी बिलकुल उतनी ही नयी है जितनी कि यह तब थी जब यह पहले-पहल महाभारत में प्रकाशित हुई थी या उसके ढांचे के अंदर प्रक्षिप्त पुनः ताजा किया जा सकता है। भारत में अभी तक भी इसका इस रूप में आदर किया जाता है कि यह उन महान् शास्त्रों में से एक है जो अत्यंत प्रामाणिक रूप में धार्मिक चिंतन को नियंत्रित करते हैं और इसकी शिक्षा को भी परम मूल्यवान माना जाता है भले ही उसे धार्मिक मत-विश्वास के लगभग सभी संप्रदाय पूर्ण रूप से स्वीकार न भी करतें हों इसका प्रभाव केवल दर्शन या विद्याध्ययन के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष और सचमुच ही इसके विचार एक जाति और संस्कृति के पुनरुज्जीवन एवं नव-जागरण में एक प्रबल निर्माणकारी शक्ति के रूप में कार्य कर रहे हैं। हाल ही में एक प्रभावशाली व्यक्ति ने यहाँ तक कह डाला है कि आध्यात्मिक जीवन के लिये हमें जिन किन्ही भी आध्यात्मिक सत्यों की जरूरत है वे सभी गीता में उपलब्ध हो सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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