सोलहवां अध्याय
परिशिष्ट-1
दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा
89. अहिंसा की और हिंसा की सेना
7. एक ओर जहाँ सद्गुणों की फौज खड़ी है, वहाँ दूसरी ओर दुर्गुणों की भी फौज तैयार है। दंभ, अज्ञान आदि दुर्गुणों के संबंध में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। इनसे हमारा नित्य का परिचय है। दंभ तो जैसे हम आदी हो गये हैं, सारा जीवन ही मानो दंभ पर खड़ा किया गया है।
अज्ञान के बारे में क्या कहा जाये! वह तो एक ऐसा मनोहर कारण बन गया है, जिसे हम पग-पग पर आगे कर देते हैं। मानो अज्ञान कोई बड़ा गुनाह ही न हो। परंतु भगवान कहते हैं- ‘अज्ञान पाप है।’ सुकरात ने इससे उलटा कहा था। अपने मुकदमे के दौरान उसने कहा- ‘जिसको तुम पाप समझते हो, वह अज्ञान है और अज्ञान क्षम्य है। अज्ञान के बिना पाप हो ही कैसे सकता है और अज्ञान को तुम दंड कैसे दोगे?'
परंतु भगवान कहते हैं- ‘अज्ञान भी पाप ही है।’ ‘कानून का अज्ञान’ यह कोई बचाव की दलील नहीं हो सकती, ऐसा कानून में कहा है। ईश्वरीय कानून का अज्ञान भी बहुत बड़ा अपराध है। भगवान के और सुकरात के कथन का भावार्थ एक ही है। अपने अज्ञान की ओर किस दृष्टि से देखना चाहिए, यह भगवान बताते है, तो दूसरे के पाप की ओर किस दृष्टि से देखना चाहिए, यह सुकरात बताता है। दूसरे के पापों को क्षमा करना चाहिए, परंतु अपने अज्ञान को क्षमा करना पाप है। अपना अज्ञान थोड़ा-सा भी शेष नहीं रहने देना चाहिए।
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