दसवां अध्याय
विभूति-चिंतन
53. प्राणी स्थित परमेश्वर
19. वैसा ही वह सांपǃ सांप से लोग बहुत डरते हैं। परंतु सांप मानो कर्मठ शुद्धि–प्रिय ब्राह्मण ही है। कितना स्वच्छǃ कितना सुंदरǃ जरा भी गंदगी उसे बर्दाश्त नहीं होती। गंदे ब्राह्मण कितने ही दिखायी देते हैं‚ परंतु गंदा सांप कभी किसी ने देखा है? वह मानो एकांतवासी ऋषि ही हो। निर्मल‚ सतेज‚ मनोहर हार जैसा वह सांपǃ उससे क्या डरनाǃ हमारे पूर्वजों ने तो उसकी पूजा का विधान किया है। भले ही आप कहिए कि हिंदू–धर्म में न जाने कैसी–कैसी मूर्खताएं भरी पड़ी हैं; परंतु नाग–पूजा का विधान उसमें अवश्य है। बचपन में मैं अपनी मां के लिए चंदन से नाग का चित्र बना दिया करता था। मैं मां से कहता– "बाजार में तो अच्छा चित्र मिलता है मांǃ" वह कहती– "वह रद्दी है‚ मुझे नहीं चाहिए। अपने बच्चों को बनाया चित्र ही अच्छा होता है।" फिर उस नागा की पूजा की जाती है। यह क्या पागलपन है? परंतु जरा विचार कीजिए। वह सर्प श्रावण मास में अतिथि बनकर हमारे घर आता है। बरसात हो जाने से उस बेचारे के सारे घर में पानी भर जाता है। तब वह क्या करेगा? दूर एकांत में रहने वाला वह ऋषि आपको व्यर्थ कष्ट न हो‚ इस विचार से किसी छप्पर के नीचे‚ कहीं लकड़ियों में पड़ा रहता है। वह कम–से–कम जगह घेरता है। परंतु हम डंडा लेकर दौड़ते हैं। संकटग्रस्त अतिथि यदि हमारे घर आ जाये‚ तो क्या उसे मारना उचित है? कहते हैं कि संत फ्रांसिस को जब जंगल में सांप दिखायी देता‚ तो वह उससे बड़े प्रेम-भाव से कहता– "आ‚ भाई आ।" सांप उसकी गोद में खेलते' उसके शरीर पर इधर–उधर चढ़ते। इसे झूठ मत समझिए। प्रेम में अवश्य ऐसी शक्ति रहती है। सांप को विषैला कहा जाता है; परंतु मनुष्य क्या कम विषैला है? सांप तो कभी-कभी काटता है। जान–बूझकर नहीं काटता। सौ में नब्बे तो निर्विष ही होते हैं। आपकी खेती की वह रक्षा करता है। खेती का नाश करने वाले असंख्य कीड़ों और जंतुओं को खाकर रहता है। ऐसा यह उपकारी‚ शुद्ध‚ तेजस्वी‚ एकांत-प्रिय सर्प भगवान का रूप है। हमारे तमाम–देवताओं में कहीं न कहीं सांप जरूर आता है। गणेश जी की कमर में हमने सांप का कमर-पट्टा बांध दिया है। शंकर के गले में साँप लपेट दिये हैं और भगवान विष्णु को तो नागशय्या ही दे दी है। इसका मर्म‚ इसका माधुर्य जरा समझो। इन सबका भावार्थ यह है कि नाग रूप में यह ईश्वरीय मूर्ति ही व्यक्त हुई है। इस सर्पस्थ परमेश्वर का परिचय प्राप्त कर लो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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