सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
सातवाँ अध्याय(ज्ञान विज्ञान योग)[जैसे गेहूँ के खेत में भले ही गेहूँ का एक दाना भी न दीखे, केवल हरी घास दीखे, पर जानकार किसान को वह गेहूँ ही दिखायी देगा। शहर का अनजान आदमी तो कहेगा कि यह तो घास है, गेहूँ है ही नहीं, पर किसान कहेगा कि यह वह घास नहीं है, जो पशु खाया करते हैं, यह तो गेहूँ है। ऐसे ही संसारी आदमी को जो संसार रूप से दिखायी देता है, वही महात्मा को भगवद्-रूप से दिखायी देता है- ‘वासुदेवः सर्वम्’। तात्पर्य है कि जैसे खेत में पहले भी गेहूँ था, अंत में भी गेहूँ रहेगा; अतः बीच में हरी-हरी घास दीखने पर भी वह गेहूँ ही है, ऐसे ही संसार के पहले भी परमात्मा थे, अंत में भी परमात्मा ही रहेंगे; अतः बीच में सब कुछ परमात्मा ही हैं।] |
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