सहज गीता -रामसुखदास पृ. 44

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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सातवाँ अध्याय

(ज्ञान विज्ञान योग)

परंतु उन तुच्छ बुद्धि वाले मनुष्यों को उन देवताओं की आराधना का जो फल मिलता है, वह सीमित तथा नाशवान् ही होता है। देवताओं का पूजन करने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं। फिर भी मनुष्य मुझे छोड़कर देवताओं की उपासना में लग जाते हैं; क्योंकि वे बुद्धिहीन मनुष्य मेरे परम, अविनाशी तथा सर्वश्रेष्ठ भाव को नहीं जानते, इसलिए मुझे साधारण मनुष्य की तरह जन्म ने मरने वाला समझते हैं। इसका कारण यह है कि मैं जन्म-मरण से रहित होते हुए भी अवतार लेकर प्रकट और अंतर्धान होने की लीला करता हूँ- इस बात को वे मूढ़ मनुष्य नहीं जानते। इसलिए मैं योगमाया से भलीभाँति छिपा रहने के कारण उनके सामने भगवद्-रूप से प्रकट नहीं होता।
हे अर्जुन! जो प्राणी भूतकाल में हो चुके हैं तथा जो वर्तमान में है और जो भविष्य में होंगे, उन सब प्राणियों को तो मैं जानता हूँ, पर मुझे भक्त के सिवाय कोई भी नहीं जानता। कारण कि हे भरतवंश में उत्पन्न परन्तप! राग तथा द्वेष से उत्पन्न होने वाले द्वंद्व मोह से मोहित होकर संपूर्ण प्राणी मुझसे विमुख होने के कारण संसार में जन्म-मरण को प्राप्त होते रहते हैं। परंतु जो द्वंद्वमोह से मोहित नहीं हैं, जिन्होंने ‘मुझे तो भगवत्प्राप्ति ही करनी है’- इस उद्देश्य को पहचान लिया है और मेरे सम्मुख हो जाने से जिनके पाप नष्ट हो गये हैं, वे दृढ़वती होकर मेरा भजन करते हैं।
वृद्धावस्था, मृत्यु आदि शरीर को दुखों से मुक्ति पाने के लिए जो मनुष्य मेरा आश्रय लेकर साधन करते हैं, वे मेरी कृपा से ब्रह्म (निर्गुण-निराकार), संपूर्ण अध्यात्म (अनन्त योनियों के अनन्त जीव) और संपूर्ण कर्म (सृष्टि, प्रलय आदि की संपूर्ण क्रियाएँ)- इस ‘ज्ञान’ के विभाग को और अधिभूत (संपूर्ण पाँच भौतिक जगत्), अधिदैव (ब्रह्मा जी आदि सभी देवता) और अधियज्ञ (विष्णु तथा उनके सभी रूप)- इस ‘विज्ञान’ के विभाग को जान जाते हैं अर्थात् ‘इन सबके रूप में मैं (भगवान्) ही हूँ’- इस प्रकार मेरे समग्ररूप को तत्त्व से जान जाते हैं। इस प्रकार मुझे जानने वाले भक्त अंतकाल में कुछ भी चिन्तन होने पर भी योगभ्रष्ट नहीं होते, अपितु मुझे ही प्राप्त होते हैं। [जिनकी दृष्टि में एक भगवान के सिवाय किंचिन्मात्र भी कुछ है ही नहीं, उनका मन भगवान् को छोड़कर कहाँ जाएगा? क्यों जाएगा? कैसे जाएगा?]

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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