हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 76

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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विशुद्ध प्रेम का स्वरूप

निर्तनि भ्रुकुटि, वदन अंबुज मृदु, सरस हास, मधु बोलनि।
अति आसक्त लाल अलि लंपट वश कीने बिनु मोलनि।।[1]

अन्‍यत्र, श्री राधा के नेत्रों से बिंध कर मोहन-मृग को गति भूल गई है - ‘बिधयौ मोहन मृग सकत चल न री।'[2]

अनन्‍य-गति अधीन होता है और अधीन अनन्‍य-गति होता है। अधीनता मीन की प्रसिद्ध है। मीन का जीवन जल के अधीन होता है; जल के बिना उसको कोई गति नहीं होती। श्री राधा अद्भुत पुष्‍प हैं और श्‍यामसुन्‍दर उसके मधुकर हैं। श्री राधा अद्भुत रस-समुद्र हैं और श्‍याम-सुन्‍दर उसके मीन हैं। मधुकर पुष्‍प से आसक्त तो पूर्णरूप से होता है, किन्‍तु पुष्‍प उसका जीवन नहीं होता, उधर मीन का जीवन तो जल होता है, मगर वह उससे आसक्‍त नहीं होता। वृन्‍दावन-रस में मधु कर एवं मीन की वृ‍त्तियों को एकत्र मिला कर रसास्‍वाद किया जाता है। ध्रुवदास जी कहते हैं-‘प्‍यारी प्रिया प्रेम का सुन्‍दर, सुवासित और रंगीन पुष्‍प हैं। हरि-मधुकर सदैव इसके पास रहे आते हैं; क्‍योंकि यह उनका जीवन भी है और वे इससे आसक्त भी हैं। श्री श्‍यामसुन्‍दर प्रेम की सहज रीति में प्रवीण हैं और अपने अंग-अंग हार कर दीन बने हुए हैं। महाप्रेम में रँग कर उन्‍होंने एक-रस दीनता का आश्रय ले रखा है और अपने-ऐसे प्रियतम को देखकर श्री राधा कभी आघाती नहीं हैं।'

प्रेम फूल प्‍यारी प्रिया, सुरँग सरूप सुबास।
इकजीवन, आसक्त पुनि, मधुप लाल रहैं पास।।
प्रेम रीति निज आहि जो, तामें लाल प्रवीण।
अंग अंग सब हारि कैं, रहे आपु ह्वै दीन।।
लिये दीनता एक रस, महाँ प्रेम रँग रात।
प्‍यारी ऐसे पीय कौं, देखते हूँ न अघात।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 34
  2. हि० च० 8
  3. श्री ध्रुवदास-प्रेमावली

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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