श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप
निर्तनि भ्रुकुटि, वदन अंबुज मृदु, सरस हास, मधु बोलनि। अन्यत्र, श्री राधा के नेत्रों से बिंध कर मोहन-मृग को गति भूल गई है - ‘बिधयौ मोहन मृग सकत चल न री।'[2] अनन्य-गति अधीन होता है और अधीन अनन्य-गति होता है। अधीनता मीन की प्रसिद्ध है। मीन का जीवन जल के अधीन होता है; जल के बिना उसको कोई गति नहीं होती। श्री राधा अद्भुत पुष्प हैं और श्यामसुन्दर उसके मधुकर हैं। श्री राधा अद्भुत रस-समुद्र हैं और श्याम-सुन्दर उसके मीन हैं। मधुकर पुष्प से आसक्त तो पूर्णरूप से होता है, किन्तु पुष्प उसका जीवन नहीं होता, उधर मीन का जीवन तो जल होता है, मगर वह उससे आसक्त नहीं होता। वृन्दावन-रस में मधु कर एवं मीन की वृत्तियों को एकत्र मिला कर रसास्वाद किया जाता है। ध्रुवदास जी कहते हैं-‘प्यारी प्रिया प्रेम का सुन्दर, सुवासित और रंगीन पुष्प हैं। हरि-मधुकर सदैव इसके पास रहे आते हैं; क्योंकि यह उनका जीवन भी है और वे इससे आसक्त भी हैं। श्री श्यामसुन्दर प्रेम की सहज रीति में प्रवीण हैं और अपने अंग-अंग हार कर दीन बने हुए हैं। महाप्रेम में रँग कर उन्होंने एक-रस दीनता का आश्रय ले रखा है और अपने-ऐसे प्रियतम को देखकर श्री राधा कभी आघाती नहीं हैं।' प्रेम फूल प्यारी प्रिया, सुरँग सरूप सुबास। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज