श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप
प्रेम के इस स्वाभाव के कारण ही भक्ति-मार्ग में अनन्यता के सिद्धान्त का इतना गौरव है। एक श्याम सुन्दर ही नहीं, श्री राधा, सहचरीगण एवं वृन्दावन सम्पूर्णतया एक दूसरे के अधीन एवं अनन्य-गति हैं। इनकी अधीनता प्रेम की अधीनता है और प्रेम की अधीनता ही उसका स्वामित्व, एवं उसकी पराजय ही विजय होती है। प्रेम-रस के रसिक ही नेहखेत की इस रीति को जानते हैं कि यहाँ हारने पर ही जीत मिलती है। जिनि कै है यह प्रेम रस, सोई जानत रीति। प्रियतम के सर्वथा अधीन रहकर उसके मुख को अपना सुख समझने वाला प्रेम परमोज्जवल होता है। प्रेम में इन दोनों वृत्तियों का प्रकाश होते ही सौन्दर्य की अनंत रेखायें फूट निकलती हैं और इन सौन्दर्य-रेखाओं के द्वारा नित्य बिहार की ललित लीलाओं का निर्माण होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री ध्रुवदास-प्रेमावाली
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